जलदी ही! अकेले लेटे हुए खाली हाथ, अकेले सरहाने, तुम्हारा ख्याल, संगी, रात, आसामाँ भक्क खुली आँखें अंधेरों को खिसकते हुए देखतीं, तुम नहीं हो रोज़ाना, ढूंढता हूँ, 'आनंद' सांसारिक और सात्विक समझा, साथ ....साथी तुम आनंदित हो, (बगैर मेरे) मेरी दुर्दशा है, पिघलो मत, ये आह (तुम तक पहुंचेगी, कहाँ?) लाईट ऑफ़, दरवाज़ा अड़काया है, कदमों का आसार है, मेरी बाँहों को इंतज़ार है! (आनंद द्वारा रचित मूलरचना "Soon" को हिंदी में व्यक्त करने की कोशिश )
अकेले हर एक अधूरा।पूरा होने के लिए जुड़ना पड़ता है, और जुड़ने के लिए अपने अँधेरे और रोशनी बांटनी पड़ती है।कोई बात अनकही न रह जाये!और जब आप हर पल बदल रहे हैं तो कितनी बातें अनकही रह जायेंगी और आप अधूरे।बस ये मेरी छोटी सी आलसी कोशिश है अपना अधूरापन बांटने की, थोड़ा मैं पूरा होता हूँ थोड़ा आप भी हो जाइये।