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जून, 2015 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

जलदी ही!

जलदी ही! अकेले लेटे हुए खाली हाथ, अकेले सरहाने, तुम्हारा ख्याल, संगी, रात, आसामाँ भक्क खुली आँखें अंधेरों को खिसकते हुए देखतीं, तुम नहीं हो रोज़ाना, ढूंढता हूँ, 'आनंद'  सांसारिक और सात्विक  समझा, साथ ....साथी  तुम आनंदित हो, (बगैर मेरे) मेरी दुर्दशा है, पिघलो मत, ये आह (तुम तक पहुंचेगी, कहाँ?) लाईट ऑफ़, दरवाज़ा अड़काया है, कदमों का आसार है, मेरी बाँहों को इंतज़ार है! (आनंद द्वारा रचित मूलरचना "Soon" को हिंदी में व्यक्त करने की कोशिश )

चंद गफ़लतें और तमाम मुगालते

और हम इन्सान हैं, यही विज्ञान है, सोच और समझ, नज़रिये और नज़ाकत, बेहतरीन नस्ल है, न खत्म होने वाली फ़स्ल है, सबसे आगे, इतना, कि कंहा से शुरु हुआ वो अब खबर नहीं है, और जरुरत भी क्यों हो, हम हकीकतें‌ बनाते हैं, जो पसंद हो, उसी को सच का ज़ामा पहनाते हैं, मज़हबी, सियासी, तहज़ीबी, इक़्तेसादी मुए! हम नूए ही ऐसे हैं,  जंगल, जानवर, जमीं ज़ायदाद हैं, खर्च करने की चीज़, और हम करते हैं, दिल से, दिमाग से फ़र्क करते हैं,  जो हमारे काबिल नहीं, उसका बेड़ागर्क करते हैं, हम इंसान हैं, बस यूँ समझिये, इस दुनिया के भगवान हैं, हर शक्ल ताकत करते हैं, बुद्ध और सांई सोना है, पैसे का बिछौना है,  कारोबार इबादत करते हैं, पैगाम शहीद हैं और पैगम्बर एक अच्छी खरीद और हम सब मुरीद हैं! इख्तेसादी - Economic; पैगम्बर - Messiah; मुरीद - Follower

आसमान, बादल और हम

यूँ जल गए आसमान हंसते हंसते, तेवर सारे रुख बदल आसान हो गए! इरादे नज़र आएं आसमान में कई, सिर्फ आसार हैं जो दिल से बयाँ हैं बूँद बूँद ही सही भिगा कर मान गए रास्ते मुसाफिर से पहचान बनाते हैं ! हकीकतें रंगीन और सच काले झूठे, मुसाफिर कुछ सामने कुछ पीछे छूटे.. सच्चाइयाँ समेट कर मुट्ठी भर आसमान, अर्ज़ करता है आप भी सुन लीजे! सपने बिखेर के मुट्ठी भर, आसमान, अर्ज़ करता है आप भी चुन लीजे! बादलों की नकाब से रंग निकले हैं, यूँ आज हर तरफ मज़ाज बदले हैं!.... बादल हैं समय के साथ बदल जाएंगे, पैगाम नज़र में है कब असर में आएंगे? 

तुम भी न!

मुझको मेरे बारे में बतलाते हो, अब मैं क्या बतलाऊँ, तुम भी ना, कम सुनता हूँ ये बड़ी शिकायत है, फिर भी कितना कह देती हो, तुम भी न, इतने सवाल कहाँ से आ जाते हैं, यूँ तो रग-रग से वाकिफ़ हो, तुम भी न, उम्र हो गयी साथ सफ़र, जो जारी है, फिर भी तनहा हो जाती हो तुम भी न गुस्से से, कभी हार और और कभी प्यार से, अच्छा लगता है पास आती हो, तुम भी न, क्या जिस्मानी, क्या रूमानी या रूहानी, तुम फिर भी तुम ही रहती हो, तुम भी न, पूरी दुनिया अपनी है हर एक इंसाँ, फिर सामने तुम आती हो, तुम भी न! फितरत सब की पकड़ने की फितरत ये, मेरी बात मुझे कहती हो, तुम भी न मौसम बदला, बदलेंगे मिज़ाज़ भी, कम ज्यादा होंगे हम, तुम भी न

आसमान पढ़ लीजे!

चमकते चौंधियाते सच चंद लम्हों के, रंग बदलते हैं तो क्या झूठे हुए? आहिस्ते से सौम्य हो गए आसमान, रुके क्यों हो आप चले जाओ, बदल आओ की हम सच बदलते हैं, अपने रंग पहचानो तो सच हो जाये! शरारत भी इसी में और शराफत भी, ये समझ जाओ तो सच सच हो जाए! कल मत इंतज़ार करना सच होने का, कल यही होगा तो वो सच नहीं होगा! आसमान आपके भी यूँ ही रंगीं हैं, बैचैनी सी कैफियत छोड़े तो ज़ाहिर हो! मुट्ठी भर जो हाथ आई बयाँ हो गयी, कम नहीं थीं सच्चाईयां चंद इज़ा हो गयीं!

कुछ करते हैं!

  इरादे ताकत करते है, इरादों कि इबादत करते हैं, जो सामने है वही सच है, इस बात से हम बगावत करते हैं, मोहब्बत ज़ाहिर करते हैं, कलम सर को हाज़िर करते हैं, उनकी बात उन्हीं को नाज़िर करते हैं, कोई शक! काफ़िर करते हैं   पसंद, दावत करते हैं, काम, कवायत करते हैं, छुट्टी, शायद करते है, कुछ नहीं तो करामत करते हैं!  जो सोचते हैं सच करते हैं, मुश्किलें आयें तो पच करते हैं, शक सामने हो तो 'च्च' करते हैं कभी कभी टू मच करते हैं! रवायत को हम 'धत' करते हैं, मज़हबी बातों को 'But' करते हैं, आप करिये हम हट करते हैं, बात सच है सपट करते हैं!   रास्तों को घर करते हैं, मकाम साथ सफ़र करते हैं, अकेले नहीं हमसफ़र करते हैं, आईये अक्सर करते हैं किसी से नहीं कंपेर करते हैं, अपने यकीनों को जिगर करते हैं, हो जायें आप बुलंद, लगे नहीं वो नज़र करते हैं,