रंग बदलते हैं तो क्या झूठे हुए?
आहिस्ते से सौम्य हो गए आसमान,
रुके क्यों हो आप चले जाओ,
रुके क्यों हो आप चले जाओ,
बदल आओ की हम सच बदलते हैं,
अपने रंग पहचानो तो सच हो जाये!
अपने रंग पहचानो तो सच हो जाये!
कल मत इंतज़ार करना सच होने का,
कल यही होगा तो वो सच नहीं होगा!
आसमान आपके भी यूँ ही रंगीं हैं,
बैचैनी सी कैफियत छोड़े तो ज़ाहिर हो!
बैचैनी सी कैफियत छोड़े तो ज़ाहिर हो!
मुट्ठी भर जो हाथ आई बयाँ हो गयी,
कम नहीं थीं सच्चाईयां चंद इज़ा हो गयीं!
कम नहीं थीं सच्चाईयां चंद इज़ा हो गयीं!
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