कम सुनता हूँ ये बड़ी शिकायत है,
फिर भी कितना कह देती हो, तुम भी न,
फिर भी कितना कह देती हो, तुम भी न,
इतने सवाल कहाँ से आ जाते हैं,
यूँ तो रग-रग से वाकिफ़ हो, तुम भी न,
यूँ तो रग-रग से वाकिफ़ हो, तुम भी न,
उम्र हो गयी साथ सफ़र, जो जारी है,
फिर भी तनहा हो जाती हो तुम भी न
फिर भी तनहा हो जाती हो तुम भी न
क्या जिस्मानी, क्या रूमानी या रूहानी,
तुम फिर भी तुम ही रहती हो, तुम भी न,
तुम फिर भी तुम ही रहती हो, तुम भी न,
पूरी दुनिया अपनी है हर एक इंसाँ,
फिर सामने तुम आती हो, तुम भी न!
फिर सामने तुम आती हो, तुम भी न!
फितरत सब की पकड़ने की फितरत ये,
मेरी बात मुझे कहती हो, तुम भी न
मेरी बात मुझे कहती हो, तुम भी न
मौसम बदला, बदलेंगे मिज़ाज़ भी,
कम ज्यादा होंगे हम, तुम भी न
कम ज्यादा होंगे हम, तुम भी न
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें