जो मन में हो वो क्या तन में होता है? अगर हाँ! तो क्या वो वज़न में भी होता है? एक बात तो तय है, आज के ज़माने में जो वज़न में हो वही मन में होता है, आकार से साकार होता है (साईज़ ड़्ज़ मेट्र) या ये सोचना बेकार होता है? देखने वालों कि नज़रों का भी प्रकार होता है! ये गिनती दुनिया कि बड़ी अज़ीब होती है, आकार शून्य (साइज़ ज़ीरो) हो तो नंबर 1 कहते हैं, किस्मत कैसे पल में बदलती है देखो कल तक शुन्य नाकाम होता था, सच है कचरे के भी दिन बदलते हैं! और नंबर 6 में क्या ख़ास है? माथे पर जड़ा हो तो कलंक है, सीने पर ऊगा हो तो आप दबंग हैं (6 सिक्स पैक एब्स) तालियाँ दोनों पर बजती है, किसी पर सजती हैं, किसी पर फब्ती हैं! 2 के बीच मुश्किल आए तो तीसरा लगता है, एक साथ दिखे तो 'तीन तिगाड़ा काम बिगाड़ा' लगता है, और बेचारा एक, बेपैंदी का लोटा, एक नंबर होशियार भी है, एक नंबर गधा भी, और चार की तो पहचान ही नहीं जैसे, भीड़ है चार, गपोड़ियों की बातें है चार, बेपेंदी का लौटा, ला-चार, व्यभि-चार, दुरा-चार बुरी बातों का अ-चार, नेक इरादों का वि-चार। क
अकेले हर एक अधूरा।पूरा होने के लिए जुड़ना पड़ता है, और जुड़ने के लिए अपने अँधेरे और रोशनी बांटनी पड़ती है।कोई बात अनकही न रह जाये!और जब आप हर पल बदल रहे हैं तो कितनी बातें अनकही रह जायेंगी और आप अधूरे।बस ये मेरी छोटी सी आलसी कोशिश है अपना अधूरापन बांटने की, थोड़ा मैं पूरा होता हूँ थोड़ा आप भी हो जाइये।