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मई, 2016 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

अंग गणित!

जो मन में हो वो क्या तन में होता है? अगर हाँ!  तो क्या वो वज़न में भी होता है? एक बात तो तय है,  आज के ज़माने में जो वज़न में हो वही मन में होता है,  आकार से साकार होता है (साईज़ ड़्ज़ मेट्र) या ये सोचना बेकार होता है? देखने वालों कि नज़रों का भी प्रकार होता है! ये गिनती दुनिया कि बड़ी अज़ीब होती है, आकार शून्य (साइज़ ज़ीरो) हो तो  नंबर 1 कहते हैं, किस्मत कैसे पल में बदलती है देखो कल तक शुन्य नाकाम होता था, सच है कचरे के भी दिन बदलते हैं! और नंबर 6 में क्या ख़ास है? माथे पर जड़ा हो तो कलंक है, सीने पर ऊगा हो तो आप दबंग हैं (6 सिक्स पैक एब्स) तालियाँ दोनों पर बजती है, किसी पर सजती हैं, किसी पर फब्ती हैं! 2 के बीच मुश्किल आए तो तीसरा लगता है, एक साथ दिखे तो 'तीन तिगाड़ा काम बिगाड़ा' लगता है, और बेचारा एक,  बेपैंदी का लोटा, एक नंबर होशियार भी है,  एक नंबर गधा भी, और चार की तो पहचान ही नहीं जैसे,  भीड़ है चार, गपोड़ियों की बातें है चार, बेपेंदी का लौटा, ला-चार, व्यभि-चार, दुरा-चार बुरी बातों का अ-चार, नेक इरादों का वि-चार। क

हम तुम

गुम हैं, कभी खुद में, कभी तुम में, कभी हम में, हम हैं, कभी साथ, कभी अकेले, कभी साथ अकेले, तुम हो, कभी साथ, कभी अकेले, कभी तुम, प्यार है,         इश्क भी,           और मोहब्बत इक़रार भी,    कभी अश्क़,        कभी बंदगी तक़रार भी,    कभी रश्क़।        कभी बगावत सरसवार भी,  कभी फ़रहत       दिलअज़ीज़ आदत                            (bliss) गम हैं, ख़ुशी भी, शिकायत भी, शरारत भी ज़ख्म हैं, दवा है, दर्द भी, और दुआ भी नज़दीकी, कभी रूमानी, कभी रूहानी, कभी बेमानी हामी, कभी इनकार, कभी तक़रार, कभी इसरार मानी, कभी मनमानी, कभी बेमानी, कभी नानी😊 दूरी, कभी खुद से, कभी तुमसे, कभी अनबन से रास्ते कभी अपने कभी सपने कभी चखने मोड़, कभी बहकाते कभी बहलाते कभी संभलाते दोनों की अलग फ़ितरत, हर आदत, साथ क़यामत दोनों की एक सोच, साथ की दुनिया हालात की तमाम ताल्लुक़ात की दोनों अकेले, दुनियादारी के, चारदीवारी के मज़हबी बीमारी के 20 साल,          20 साल,               20 साल कोई शक,          कभी ख़ामोशी,       कभी रास्ता, कोई सवाल,       कभी धमाल।        

अपनी तस्वीर

फर्क नहीं पड़ता कोई, कि खुदा एक है या कई, जरा बताओ, दुनिया की चारदीवारी के बीच, तुम घर हो, या  न घर के न घाट के? क्या तुम हारना जानते हो,  खुद या किसी और के ज़रिये? क्या तुम तैयार हो जीने के लिए, इस दुनिया में, तुमको बदलने, इसकी सख्त जरुरत के बावजूद? क्या तुम पीछे नज़र डाल ये यकीं से बोल सकते हो कि हाँ मैं सही था!? मुझे ये जानना है, कि क्या तुम जानते हो रोजना ज़िन्दगी को झुलसाने वाली, आग में,  पानी होकर अपनी हसरतों के चक्र्वात में, कैसे पिघलते हैं? मुझे ये बताओ, क्या तुम तैयार हो, जीने के लिए, हर दिन;  रोज़ाना! मोहब्बत के नतीजों से और। और अपनी तय हार से उपजे, तुम्हारे सरसवार कड़वे जुनून से? मैंने सुना है,  इस जकड़ती आग़ोश में,  भगवान भी खुदा का नाम लेते हैं!

हकीकत की माया!

वो इंसान ही क्या जो इंसान न हो? वो भगवान ही क्या जिसका नाम लेते जुबां से लहुँ टपके? वो मज़हब ही क्या जो इंसानो के बीच फरक कर दे? वो इबादत कैसी जो किसी का रास्ता रोके? वो अक़ीदत क्या जो डर की जमीं से उपजी है? वो बंदगी क्या जो आँखे न खोल दे? वो शहादत क्या जो सिर्फ किसी का फरमान है? वो कुर्बानी क्या जो किसी के लिए की जाए? वो वकालत कैसी, जो ख़ुद ही फैसला कर ले? वो तक़रीर क्या जो तय रस्ते चले? वो तहरीर क्या जिससे आसमाँ न हिले? वो तालीम क्या जो इंक़लाब न सिखाये? वो उस्ताद क्या जो सवाली न बनाये? वो आज़ादी क्या जिसकी कोई जात हो? वो तहज़ीब क्या जिसमें लड़की श्राप हो? वो रौशनी क्या जो अंधेरो को घर न दे? वो हिम्मत क्या जो महज़ आप की राय है? वो ममता क्या जो मजहबी गाय है, बच्ची को ब्याहे है? वो मौका क्या जो कीमत वसूले? …… फिर भी सुना है, सब है, इंसान, भगवान्, मज़हब, इबादत, क्या मंशा और कब की आदत! अक़ीदत और बंदगी, तमाम मज़हबी गंदगी! शहादत ओ कुर्बानी, ज़ाती पसंद कहानी! वक़ालत, तहरीर, तक़रीर, झूठ के बाज़ार, खरीदोफरीद! तालीम और उस्ताद, आबाद बर्बाद! आज़ाद