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अपनी तस्वीर

फर्क नहीं पड़ता कोई,
कि खुदा एक है या कई,

जरा बताओ,
दुनिया की चारदीवारी के बीच,
तुम घर हो, या 
न घर के न घाट के?


क्या तुम हारना जानते हो, 
खुद या किसी और के ज़रिये?
क्या तुम तैयार हो जीने के लिए,
इस दुनिया में,
तुमको बदलने,
इसकी सख्त जरुरत के बावजूद?

क्या तुम पीछे नज़र डाल
ये यकीं से बोल सकते हो कि
हाँ मैं सही था!?

मुझे ये जानना है, कि
क्या तुम जानते हो
रोजना ज़िन्दगी को झुलसाने वाली,
आग में, पानी होकर
अपनी हसरतों के चक्र्वात में,
कैसे पिघलते हैं?

मुझे ये बताओ, क्या तुम तैयार हो,
जीने के लिए, हर दिन; रोज़ाना!
मोहब्बत के नतीजों से और।
और अपनी तय हार से उपजे,
तुम्हारे सरसवार कड़वे जुनून से?

मैंने सुना है, 
इस जकड़ती आग़ोश में, 
भगवान भी खुदा का नाम लेते हैं!

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हाथ पर हाथ!!

मर्द बने बैठे हैं हमदर्द बने बैठे हैं, सब्र बने बैठे हैं, बस बैठे हैं! अल्फाज़ बने बैठे हैं आवाज बने बैठे हैं, अंदाज बने बैठे हैं, बस बैठे हैं! शिकन बने बैठे हैं, सुखन बने बैठे हैं, बेचैन बने बैठे हैं, बस बैठे हैं! अंगार बने बैठे हैं तूफान बने बैठे हैं, जिंदा हैं शमशान बने बैठे हैं! शोर बिना बैठे हैं, चीख बचा बैठे हैं, सोच बना बैठे हैं बस बैठे हैं! कल दफना बैठे हैं, आज गंवा बैठे हैं, कल मालूम है हमें, फिर भी बस बैठे हैं! मस्जिद ढहा बैठे हैं, मंदिर चढ़ा बैठे हैं, इंसानियत को अहंकार का कफ़न उड़ा बैठे हैं! तोड़ कानून बैठे हैं, जनमत के नाम बैठे हैं, मेरा मुल्क है ये गर, गद्दी पर मेरे शैतान बैठे हैं! चहचहाए बैठे हैं,  लहलहाए बैठे हैं, मूंह में खून लग गया जिसके, बड़े मुस्कराए बैठे हैं! कल गुनाह था उनका आज इनाम बन गया है, हत्या श्री, बलात्कार श्री, तमगा लगाए बैठे हैं!!

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