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जुलाई, 2016 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

चाहिए! चाहिए! चाहिए!

पंसारी की दुकान है उपर आसमान में, हाथ उठे हैं और सबको सामान चाहिए! काम फ़कीरी का ज़रा आसान चाहिए क्यों दुआ माँगें के सुख-सामान चाहिए! क्यों लाउड़स्पीकर भर भजन, इबादत है? नेमत बरस रही है आपको कान चाहिये! लॉटरी वाले का नाम भगवान चाहिए, मन्नत पूरी होना ज़रा आसान चाहिए! क्यों शोर मंदिर-मस्जिद-गिरजे में इतना है, काफ़ी नहीं के सबको इंसान होना चाहिए? बस एक फ़िक्र के दोनों हाथों में लड़्ड़ू हो, भगवान चाहिए या सिर्फ़ भगवान...! चाहिए? हाथ खड़े कर रख्खे हैं मंदिर के भगवान ने, आज़ादी के लिये शायद इंसान चाहिए! सुना, सब कुछ संभव है इंसान चाहे तो,  बस गुंड़े, दलाल, ओ लाठी बंदूक चाहिए!  

बेढब मुमकिनियत!

पेट भर के बात की उम्मीद क्या करें साथ उम्र भर को दो लम्हा कान चाहिए! जब देखो लगे है सब गधामजूरी में कहते है ज़िन्दगी में आराम चाहिए! दिन कैसा भी गुजरे हर किसी का जी चाहे सुहानी हर शाम चाहये!  क्यों किसी से बैर चाहिए, सबको अपनी खैर चाहिए इतनी जलदी नउम्मीदी, कुछ होने देर-सबेर चाहिए ज़मीं, ज़मीं पर है, और उपर आसमान किसको खबरें पड़कर परेशान चाहिए? कौन दूर है हमसे कौन आ गया है पास ज़िदगी ज़ीना है या इसका हिसाब चाहिये हाँ नही तो, हम नहीं होते यूँ उदास, आईने में नज़र अपने पास चाहिए! जेब में अपनी भगवान चाहिए, उम्मीदों को मुफ़्त दुकान चाहिए, मन हुआ तो सामने हाज़िर हो, किस्मत सबको अलादीन चाहिए! काम चाहिए, नाम और आराम भी, अपने ही पोस्टर लगे बाज़ार चाहिए!

जय श्री राम!

घर में सबको भगवान चाहिए, मंदिर का रास्ता आसान चाहिए, पैसे से मिलते है दर्शन, फिर किसको लंबी लाइन चाहिए! लोग मक्खी की तरह फिरते हैं, पहले घर को सामान चाहिए, कौन तपस्या करे, और तीर्थ पैदल करे, जन्नत के लिए अब विमान चाहिए! सीधी ऊँगली से नहीं मिलता, तरीका सबको शैतान चाहिए। कोई और करे तो बुरी बात है, किसको अपनी तरफ ध्यान चाहिए! टीवी सीरियल बन रही है ज़िन्दगी, सुनने को दिल की बातें 2 एक्सट्रा कान चाहिए, हर गली में मंदिर, हर पूजा पंडाल, जहाँ मर्जी कचरा, हर दीवार मूत्रपीकपान, बस उतना आसान भगवान चाहिए! किसने देखा है कितनी मुश्किल आसान? हो रहा है बस इतना सबको भान चाहिए! जो समझ सकते हैं सच्चाई वो बच्चे हैं, उनके दिमाग में सेंध लगानी है, अब तक मान्यता की बातें होती थीं, अब भगवान को विज्ञान चाहिए!! भगवान की क्या औकात हाथी को श्रीगणेश करें, प्लास्टिक सर्जन कोई उस टाईम चाहिए! प्रभु की क्या जुर्रत की जमीन आसमान करें, इंजीनियर का बनाया पुष्पक विमान चाहिए! कुछ नया नहीं है दुनिया में, हमेशा होता आया है, अंधभक्ति को मूरख इंसान चाहिए! जय श्री राम......देव, आसा, रवि

मुकम्मल ख्वाब!

कुछ सवाल थे जिनके जवाब मिले थे एक शख्स कि शक्ल में ख्वाब मिले थे! वक़्त चलने-ठहरने के राज़ मिले थे , कल की क्या सोचें जो आज मिले थे!  बेशक्ल सपने थे फ़िरते आवारा से, ऐसे कुछ हालात ज़ब आप मिले थे! सपनों को पालने के शौकीन नहीं थे,  क्या करें वो जो ऐसे लाज़वाब मिले थे! सोये हुए कितने ख्वाब सुबह गुम हुए जागे हुए थे जब हमको आप मिले थे! यूं‌ नहीं कि तराजू लिये फ़िरते हैं हम, कुछ यकीन जो बराबर नाप मिले थे! न मन्नत माँगी, न चराग लिये घूमे, इत्तफ़ाकन ही कभी हम-आप मिले थे! मुसाफ़िर हैं सभी किसी न किसी सफ़र के, फ़िर कंधे मिले गये ओ कभी हाथ मिले थे! न इक़रार हुआ कभी और न इनंकार हम उनसे मिल गये वो हमसे मिले थे! न हाल ठीक था, न हालात मुफ़ीद* थे, जिद्दियों के आगे किसकी दाल गले थे? मुफ़ीद - Favourable

आंनद क्या और कब?

                  मैं जो जानता हूँ, मैं कर सकता हूँ, खूबसूरती से उसे दरकिनार करूं मैं जो सोचता हूँ मेरा होगा वो उम्मीद कभी पूरी न हो मैं जो आस लगाये बैठा हूँ दूसरे सराहेगें, स्वीकारेंगे काश वो नौबत न आये मैं जो लड़ता हूँ पूरे गूरूर और मुंहबाँइं आशंकाओं के रहते वो मुझे हारना ही चाहिये जो भी पकाउँ “मैं" और ‘तुम’ चखो ‘मैं’ बिगाड़ ही दूंगा कोई आकर्षण खूबसूरती कोई देने में है जहाँ जरुरत है सहज जो भी सामने. है कोशिश जो बस मौज़ूद जो भी समझा है बाहर दूर बारीख नज़र में है वही जो है जो बनाता है तुम्हें, कोई और दिल की गर्मी के आगोश में पिघल जाये आमीन! (करीबी आनंद चाबुकस्वर की कविता का इंग्लिश से अनुवाद)

क्या खेल खेलें कश्मीर के बच्चे?

आज बहुत मजबूर हूँ, कश्मीर से बहुत दूर हूँ, जैसे पेड़ खजूर हूँ, याद आ रहे हैं वो दिन, वो लोग जो इंसान थे, हमारी तरह, तुम्हारी तरह एक उम्दा मेज़बान की तरह, साथ हंसते थे, हम परेशान न हो, इसके लिए परेशां रहते थे, जब उनके साथ "खेल से मेल" किया, तो सब वैसे ही हँसे जोर जोर से, जैसे लोग बनारस में हँसे थे, या कंदमाल में, दिल्ली में, पुणे में, जुबा में, येंगॉन में पर उसके बाद जो बात हुई, तब उनके दर्द से मुलाक़ात हुई, "हमारा बचपन अँधेरे को बली था" अब हम अपने बच्चों को हंसाएंगे, वो हमारे शुक्रगुजार हुए, और हम, अपनी नज़रों में ज़रा कम गुनाहगार हुए, कश्मीर भारत को खूबसूरत है, और सारे देशभक्त, उसको कोठे पर बिठाना चाहते हैं, एक जगह है सबके लिए, जहां से डॉलर्स आते हैं, पाउंड, यूरो, और रूपये भी, कौन छोड़ता है ऐसे माल को, हर साल जो नयी हो जाती है, वर्जिन तैयार नथ उतरवाने को, कौन देखता हैं कि वहां इंसान हैं, उनके दिल हैं, उनकी जान है, उनके बच्चे हैं जो सरकार की गोली कुर्बान हैं! सफर ज़ारी था, आने जाने में, कश्मीरी दोस्त हमको लगे जगहों के बारे बताने