यूँ भी किसी के शुक्रगुज़ार न रहो,
न कर्ज़ बनो ओ' न उधार ही रहो!
हमसफ़र हैं सभी इस दुनिया में,
कभी किसी के गुनहगार न रहो
मेरी मर्ज़ी थी सो मैंने कर दिया,
मर्ज़ी तुम्हारी तलबगार रहो न रहो!
अपने ही यकीन के साथ जीते हैं,
बेचते हैं क्या, के खरीददार न रहो?
ये एहसानों का धंधा बड़ा पुराना है,
खुदगर्ज़ी से तुम मददगार न रहो!
किसी की ख़ातिर कुर्बानी फ़िज़ूल है,
दिल-ओ-ईमान के दुकानदार न रहो!
मेरी मर्ज़ी थी सो मैंने कर दिया,
मर्ज़ी तुम्हारी तलबगार रहो न रहो!
अपने ही यकीन के साथ जीते हैं,
बेचते हैं क्या, के खरीददार न रहो?
ये एहसानों का धंधा बड़ा पुराना है,
खुदगर्ज़ी से तुम मददगार न रहो!
किसी की ख़ातिर कुर्बानी फ़िज़ूल है,
दिल-ओ-ईमान के दुकानदार न रहो!
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