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जन्नत कहाँ?


सुना है सब आतंकी हैं,
इस जगह!
हर एक शख़्श!
बच्चा, बूढ़ा, आदमी औरत,
और एल जी बी टी क्यू!?
क्यूँ??
यहाँ की हवा में शायद,
कोई बात हो!
क्यों?
कश्मीर!
वही जगह दुनिया की,
"अगर जन्नत है तो यहीं, यहीं, यहीं है"
कश्मीरी भी वही हैं?
वादियां भी वही,
वही बर्फ, वही चिनार,
वही डल, वही हज़रतबल!
फिर बदला क्या है?
हवा में,
क्यों बारूद घुल गया है?
सबकी नसों में कड़वाहट घोलने वाला!
ये ज़हर कब मिल गया है?
ये ज़हर आया कहाँ से?

कौन है जो बदलाव नहीं बदला बोलता है?


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साफ बात!

  रोशनी की खबर ओ अंधेरा साफ नज़र आता है, वो जुल्फों में स्याह रंग यूंही नहीं जाया है! हर चीज को कंधों पर उठाना नहीं पड़ता, नजरों से आपको वजन नजर आता है! आग है तेज और कोई जलता नहीं है, गर्मजोशी में एक रिश्ता नज़र आता है! पहुंचेंगे आप जब तो वहीं मिलेंगे, साथ हैं पर यूंही नज़र नहीं आता है!  अपनों के दिए हैं जो ज़हर पिए है जो आपको कुछ कड़वा नज़र आता है! माथे पर शिकन हैं कई ओ दिल में चुभन, नज़ाकत का असर कुछ ऐसे हुआ जाता है!

मेरे गुनाह!

सांसे गुनाह हैं  सपने गुनाह हैं,। इस दौर में सारे अपने गुनाह हैं।। मणिपुर गुनाह है, गाजा गुनाह है, जमीर हो थोड़ा तो जीना गुनाह है! अज़मत गुनाह है, अकीदत गुनाह है, मेरे नहीं, तो आप हर शक्ल गुनाह हैं! ज़हन वहां है,(गाज़ा) कदम जा नहीं रहे, यारब मेरी ये अदनी मजबूरियां गुनाह हैं! कबूल है हमको कि हम गुनहगार हैं, आराम से घर बैठे ये कहना गुनाह है!  दिमाग चला रहा है दिल का कारखाना, बोले तो गुनहगार ओ खामोशी गुनाह है, जब भी जहां भी मासूम मरते हैं, उन सब दौर में ख़ुदा होना गुनाह है!

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