क्या इस देश की दशा हो गई है
क्या इस देश की दिशा हो गई है?
ताकत तो हमेशा से ही नशा थी,
अब अवाम की सज़ा हो गई है!
सोचो मत, बोलो मत, देखो मत,
देशप्रेम की ये इल्तज़ा हो गई है!
खामोशियाँ बहरा न कर दे सबको,
कुछ ऐसी आजकल हवा हो गई है!
बहका दो नफ़रत से या चुप कर दो,
नौजवानी जैसे कोई सज़ा हो गई है!
इस दौर कोई भी मासूम कैसे हो?
मुख़ालिफ़त ही गुनाह हो गई है!
बस?
अपनी अपनी सोच के सब क़ाबिल,
राय मेरी, सच की जगह हो गई है!
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें