तबाही में सब आबाद होते हैं,
यूं इस मुल्क में बरबाद होते हैं।
चौखट पर बैठे हैं हैवानियत के,
इस दौर में जो नाबाद होते हैं?
एक ही बीमारी के सब मरीज़,
नफ़रत के अपनी धारदार होते हैं!
मज़लूम हैं वो ही बर्बाद हैं, ओ हम
पूंजीवाद के क्यों तरफ़दार होते हैं?
ख़ुद से सोचना गुम होता हुनर है,
हवा की रुख के अब सवार होते हैं!
पेशेवर सब नए गुलाम हैं काबिल,
हुक़्म कोई भी हो, सब तैयार होते हैं!
क्या मजाल किसी की, अलग सोच ले,
जो हैं वो सब दर रोज़ गिरफ़्तार होते हैं!
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