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नवीन



एक आह है जिसे गुमराह करते हैं,

यूँ टूटकर जो आप दिलों को तरते हैं!!


बेइंतहा ईश्क है आपके सीने में,

काहे कमबख़्त कायदा करते हैं!!




तमाम खूबियां हैं यारब तुझमें,

क्यों बस खामियों का जायज़ा करते हैं?


एक ख़लिश का ये लंबा सफर है,

कुछ तजुर्बे ताउम्र असर करते हैं!.


कितने आसान हैं साथ जब हों,

जो सामने वही आईने दिखते हैं!



कितने शिकन चल गुज़रे पेशानी से,

खामखाँ ही इतनी फिक्र करते हैं!


देर आये, दुरुस्त आये, चुस्त आये,

यूँ भी अपने यकीन असर करते हैं!


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हाथ पर हाथ!!

मर्द बने बैठे हैं हमदर्द बने बैठे हैं, सब्र बने बैठे हैं, बस बैठे हैं! अल्फाज़ बने बैठे हैं आवाज बने बैठे हैं, अंदाज बने बैठे हैं, बस बैठे हैं! शिकन बने बैठे हैं, सुखन बने बैठे हैं, बेचैन बने बैठे हैं, बस बैठे हैं! अंगार बने बैठे हैं तूफान बने बैठे हैं, जिंदा हैं शमशान बने बैठे हैं! शोर बिना बैठे हैं, चीख बचा बैठे हैं, सोच बना बैठे हैं बस बैठे हैं! कल दफना बैठे हैं, आज गंवा बैठे हैं, कल मालूम है हमें, फिर भी बस बैठे हैं! मस्जिद ढहा बैठे हैं, मंदिर चढ़ा बैठे हैं, इंसानियत को अहंकार का कफ़न उड़ा बैठे हैं! तोड़ कानून बैठे हैं, जनमत के नाम बैठे हैं, मेरा मुल्क है ये गर, गद्दी पर मेरे शैतान बैठे हैं! चहचहाए बैठे हैं,  लहलहाए बैठे हैं, मूंह में खून लग गया जिसके, बड़े मुस्कराए बैठे हैं! कल गुनाह था उनका आज इनाम बन गया है, हत्या श्री, बलात्कार श्री, तमगा लगाए बैठे हैं!!

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