मोइनुल हक़ क्यों भागा? लाठी ले कर क्यों भागा? लाठी में कितनी गोली थी? ऐसी क्या उसकी बोली थी? पुलिस के कितने लोग थे? उनका सीना क्या छप्पन था? उनकी लाठी में क्या कम था? लाठी से पहले क्यों बंदूक चली? फिर उसके बाद क्यों लाठी? क्यों उसका मरना काफ़ी न था? क्या गुनाह हुआ जो माफ़ी न था? फिर कौन लाश पर नाच किया? उसपर किसने विश्वास किया? उस का आखिर क्या मज़हब था? क्या वो कोई अवतार था? क्या कोई दैवीय शक्ति थी? या ये परम भक्ति थी? देखा आपने भी होगा? नफ़रत में कितनी शक्ति थी? क्या मोइनुल कमजोर था? क्या वो बहक गया था? या वो बिल्कुल पागल था? बंदूक से लाठी लड़ने आया, उसको आखिर क्यों गुस्सा आया? क्या मोइनुल को गुस्से का हक़ था? गरीब मजबूर और अहमक था? क्या वो इंसान बनने के लिए दौड़ा था? क्या सरकार ने जानवर की तरह खदेड़ा था? क्या चुप रहना ठीक होता? जुल्म सहना समझदारी? क्या उसे लोकतंत्र नहीं समझा? क्या उसे न्यायपालिका पर भरोसा न था? क्या ये कोर्ट की अवमानना नहीं है? अगर सरकार नहीं मानते, न्याय नहीं जानते? फिर तो वो भारतीय कहलाने लायक नहीं? फिर क्यों हम उसकी बात करें? इंसान नहीं? भारतीय नहीं? पुरानी ख़बर हुई, अब न
अकेले हर एक अधूरा।पूरा होने के लिए जुड़ना पड़ता है, और जुड़ने के लिए अपने अँधेरे और रोशनी बांटनी पड़ती है।कोई बात अनकही न रह जाये!और जब आप हर पल बदल रहे हैं तो कितनी बातें अनकही रह जायेंगी और आप अधूरे।बस ये मेरी छोटी सी आलसी कोशिश है अपना अधूरापन बांटने की, थोड़ा मैं पूरा होता हूँ थोड़ा आप भी हो जाइये।