एक आह लिए बैठे हैं
एक चाह लिए बैठे हैं,
पहचाने रास्ते हैं फिर भी
गुमराह हुए बैठे हैं!
दर्द तमाम लिए बैठे हैं,
क्या इतमिनान लिए बैठे हैं?
अपने दिल के बगीचे को
वीरान लिए बैठे हैं!
एक मुस्कान लिए बैठे हैं,
कैसा ये काम लिए बैठे हैं,
कहीं कुछ आसान करेंगे,
ये गुमान लिए बैठे हैं!
अपना आराम लिए बैठे हैं,
नक़ाब पहन लिए बैठे हैं,
करम के फल हैं सारे,
मूरख मान लिए बैठे हैं!
हाथ बांध लिए बैठे हैं,
झूठी शान लिए बैठे हैं,
कत्ल हो रहे है सच कितने,
ओ वो राम लिए बैठे हैं?
नया विज्ञान लिए बैठे हैं,
चंद्र, मंगलयान लिए बैठे हैं,
ऑक्सीजन कम हुई तो क्या?
सब बंद कान लिए बैठे हैं!!
नफ़रत ठान लिए बैठे हैं,
कैसा धर्मज्ञान लिए बैठे हैं
मंत्री संत्री सब एक सुर में,
तोतों सा ज्ञान लिए बैठे हैं!
मुंह में राम लिए बैठे हैं,
बगल संविधान लिए बैठे हैं,
घड़ियाली आँसू हैं सारे, ओ
सब सच मान लिए बैठे हैं?
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