गुमसुम हो,
रास्ते नहीं मिलते
कदम हिचक रहे हैं
इरादे खामोश हैं
ये कौन मंजिल है?
ये क्या हासिल हैं?
क्यों मझधार साहिल है,
कहां जाएं?
पहला कदम!
मान जाएं,
हवा, पानी,
फूल पत्ते,
हरियाली,
नील गगन
सूरज के आते-जाते
अदभुत रंग,
आपके लिए है,
दुनिया इस ढंग
दूसरा कदम,
जान जाइए,
आप मिट्टी से जुड़े हैं
ठीक उसी तरह,
जैसे हर जीवन,
सब की यहीं जड़ें हैं,
हर एक अधूरा है,
मिलकर सब पूरा है,
कोई कम नहीं,
किसी से,
किसी वजह से,
किसी भी,
तो अब जब चल दिए हैं,
पहला कदम, दूसरा भी
तीसरा कदम,
पहचान जाइए,
रास्ते चलने से बनते हैं,
चलते चलते रास्ते बनते हैं।
चलिए आप अपने सफर,
फिर कहीं मिलते हैं!
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