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सितंबर, 2010 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

कॉमनवेल्थ - एक खेल!

सब की मिल्कियत खेल बन गयी है नंगी हकीकत जेल बन गयी है, लगे हैं फर्श को चमकाने में, संगमरमर पर तेजाब बह रहा है उन रंगों को धोने में जो हमारी संस्कृति को पीलिया ग्रस्त दिखा रहे हैं, तेजाबी धुंए में कैमरे और कलम से सेंध लगाते मदहोश खबरी ब्रेकिंग न्यूज़/breaking news पर झूम रहे हैं, पैदल दूरियों पर निराशा, गुस्सा, कुंठा दूषित सांसे ले रही है जुकामी बच्चे अपनी बीमारी का स्वाद लेते कचरे के मैदान में पिचकी, तिरस्कृत गेंदों को आसमान दिखा रहे हैं ये किसी की दौलत नहीं,  सबकी कॉमन वेल्थ है  ये खेल तो चलता रहेगा. आप तमाशे की तैयारी करें खेल भावना मत भूलिए और जूते पहन कर जाइए अगर छत गिरती है तो भागना मत भूलिए क्या आप इन खेलों का हिस्सा बनने को तैयार हैं? तो चलिए कलम-आडी करिये, साथी हाथ बढाना ....

मेरा भारत महान !

भारत एक देश है या बेबसी में वैश्या बनी माँ का भेष है एक ही सच का सब ऐश है हर मुश्किल का हल सिर्फ कैश है लो कर लो बात! बदलाव को क्या चाहिए लात या हाथ, मज़बूरी के हाथ, ताकत की लात, कुछ लोग मनवा लेते हैं अपनी हर बात , गरीबों हटाओ, मंदिर बनाओ सवाल ? देश नक़्शे में खिंची लकीरों से परिभाषित है या रहने वालों की आशाओं से उजागर या पस्त हुई सांसों में अस्त बड़ी सड़कें, ऊँचे मकान, सुगर फ्री पकवान, विदेशी कंपनियां, अप्रवासी भारतीय मेहमान, मेड इन इंडिया सामान विदेशों में बिकता है, गेहूँ गोदामों में फिंकता है आज हमारा बाजार गरम है बस शर्त इतनी है की त्वचा गोरी ओर नरम है, हाँ, हैं कुछ लोग जो तरक्की के साथ नहीं चल पा रहे नींद नहीं आती, इसलिए सपने भी नहीं आ रहे, जाहिर है, देश को आगे ले जाना है तो, नज़र अंदाज़ करना होगा! उस वर्ग को, जो अपनी भूख को ही खा रहे, सच है, गरीबी भी एक नशा है, एक बार चरस छुट जाये, पर गरीबी, ये नशा, जो ना करवा दे वो कम, माँ, बेटी को सजा रही है, ये भारत देश है या बेबसी में वैश्या बनी माँ का भेष है!

कितने सच?

क्या सच आजाद होते हैं?  अकेले? अपने आप में पूर्ण? आत्मनिर्भर दो सच जब साथ आते हैं तो सामने होते हैं या बगल में इंसान जब सामने आते है तो नागासाकी पहुँच जाते हैं, अगर आप कहते हैं दुनिया सुन्दर है तो आप शायद बन्दर हैं टुकुर टुकुर देखते, पैरों पर खड़ा होना सीख गए पर ध्यान शायद अब भी उस आम में अटका है जिसकी गुठली के दाम नहीं होते दुनिया चीख कर कह रही है "ये आदमी किसी काम का नहीं" पर आप कान नहीं होते! अगर आप रामभरोसे हैं तो याद कीजिये? सीता का हश्र मर्यादा या मर्द आधा आज का सच विकास है! गला तर, पेट भर प्यासे के भूख कि किस को खबर किसके नज़र ऊँचे मकानों में मौत भी दावत है ओर जिनको छत नहीं उनकी ये आदत है अमीर ओर अमीर, गरीब ओर गरीब ये अब एक कहावत है, किवदंती, क्या सोचें उनको जिनकी पहचान है सिर्फ गिनती, ८०% प्रतिशत, २० रूपये रोज, " सच " कहते है बड़ा बलवान पर उसकी तो सुपारी दे दी है, सर उठाओ सामने है पहलवान, और आज कि द्रौपदी के भी वही हाल है साडी जितनी कम, बाज़ार उतना गर्म, पापी पेट का सवाल है

दूध का दूध, पानी का पानी

सब कहते हैं शमां जला देती ही परवानों को, कौन कहे कि शमां को जलाया किसने है ? मर्द को औरत पर कितना प्यार आया है दिल नहीं टूटे किसी का हरम बनाया है! वो सहें दर्द तो उनकी नियति है आप करते अहसान, कि जिनकी गिनती है? कहने को तो इश्क में हर चीज़ जायज़ है फिर क्यों कर किसी कि हस्ती नाजायज़ है ? गले में मंगल माथे पर सिन्दूर कहीं सुना था प्यार को बंधन नहीं मंजूर! हर शहर में चमड़े का धंधा होता है सच कहा किसी ने प्यार अंधा होता है? 'अवसर' आने पर उनको पूज लेते हैं असर मर्दानिगी में इज्जत भी लुट लेते हैं? कभी कहते बला है कभी अबला बन गयी कमजोरी तो दल बदला दूध का दूध, पानी का पानी मिलावट नहीं है, अर्थात जनानी आँचल में दूध है, आँखों में पानी (मानवता के बेहतर अर्धांश को समर्पित)

कामयाबी

कामयाबी पैरों में बंधी एक जंजीर है, कैद करती एक तस्वीर है अपेक्षाओं की लक्ष्मण रेखा आकांक्षाओं का रुख करी हवा एक का सवा, निन्यानवे का फेर, कहीं कुछ, अगर-मगर, सवालों के ढेर, ऊंचाई पर नजर,   नीचे होती जमीं, अब कामयाबी आपके सर लदा सामान है कहीं खो ना जाये इसी में अटकी जान है देर सबेर या शायद अंधेर, पक्के इरादे? चट्टान हो सकते है पर मुसाफिर और मेहमान नहीं, जायके आदत बन जाएँ तो असर नहीं होते तय रास्तों पर सफर नहीं होते कामयाबी को दूसरे रास्ते नजर नहीं होते गलियां कभी दिखती नहीं मोड़ अनजाने होते है जो खोज में निकले वो फितरत, दीवाने होते हैं आप अगर कामयाब हैं तो आपका रास्ता तय है उस पर आगे जय है उसके बगैर कुछ भी और भय है, आगे आपकी मर्ज़ी आपको कामयाबी कबुल है या जिंदगी की गत बदलना आपका उसूल है!