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कॉमनवेल्थ - एक खेल!

सब की मिल्कियत खेल बन गयी है

नंगी हकीकत जेल बन गयी है,

लगे हैं फर्श को चमकाने में,

संगमरमर पर तेजाब बह रहा है

उन रंगों को धोने में

जो हमारी

संस्कृति को पीलिया ग्रस्त दिखा रहे हैं,

तेजाबी धुंए में कैमरे और कलम से सेंध लगाते

मदहोश खबरी ब्रेकिंग न्यूज़/breaking news पर झूम रहे हैं,

पैदल दूरियों पर

निराशा, गुस्सा, कुंठा दूषित सांसे ले रही है
जुकामी बच्चे अपनी बीमारी का स्वाद लेते

कचरे के मैदान में

पिचकी, तिरस्कृत गेंदों को आसमान दिखा रहे हैं

ये किसी की दौलत नहीं, 



सबकी कॉमन वेल्थ है 

ये खेल तो चलता रहेगा.

आप तमाशे की तैयारी करें

खेल भावना मत भूलिए







और जूते पहन कर जाइए

अगर छत गिरती है

तो भागना मत भूलिए

क्या आप इन खेलों का हिस्सा बनने को तैयार हैं?

तो चलिए कलम-आडी करिये,

साथी हाथ बढाना ....

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हाथ पर हाथ!!

मर्द बने बैठे हैं हमदर्द बने बैठे हैं, सब्र बने बैठे हैं, बस बैठे हैं! अल्फाज़ बने बैठे हैं आवाज बने बैठे हैं, अंदाज बने बैठे हैं, बस बैठे हैं! शिकन बने बैठे हैं, सुखन बने बैठे हैं, बेचैन बने बैठे हैं, बस बैठे हैं! अंगार बने बैठे हैं तूफान बने बैठे हैं, जिंदा हैं शमशान बने बैठे हैं! शोर बिना बैठे हैं, चीख बचा बैठे हैं, सोच बना बैठे हैं बस बैठे हैं! कल दफना बैठे हैं, आज गंवा बैठे हैं, कल मालूम है हमें, फिर भी बस बैठे हैं! मस्जिद ढहा बैठे हैं, मंदिर चढ़ा बैठे हैं, इंसानियत को अहंकार का कफ़न उड़ा बैठे हैं! तोड़ कानून बैठे हैं, जनमत के नाम बैठे हैं, मेरा मुल्क है ये गर, गद्दी पर मेरे शैतान बैठे हैं! चहचहाए बैठे हैं,  लहलहाए बैठे हैं, मूंह में खून लग गया जिसके, बड़े मुस्कराए बैठे हैं! कल गुनाह था उनका आज इनाम बन गया है, हत्या श्री, बलात्कार श्री, तमगा लगाए बैठे हैं!!

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