कुछ नज़दीकियां हैं जिनको मंजुर हम नहीं
यार हैं पर यार के कमज़ोर हम नहीं
लगता है लम्हॊ को हम रास नहीं आते
उम्र हो गयी, अब वो पास नहीं आते
बहकने का अब सारा जिम्मा हमारा है
उनके हाथॊ में, अब वो जाम नहीं आते
नब्ज़ देख, अब भी हाल जान लेते हैं
क्या करें हम ? जो उनके हाथ नहीं आते
यकीं को कुछ कम हो गये वादे हमारे
दायरऒ के बाहर अब, इरादे नहीं आते
महफ़िल में अब भी शुन्य का जिक्र आता है
कैसे कहें अब गिनतियॊ में हम नहीं आते।
यार हैं पर यार के कमज़ोर हम नहीं
लगता है लम्हॊ को हम रास नहीं आते
उम्र हो गयी, अब वो पास नहीं आते
बहकने का अब सारा जिम्मा हमारा है
उनके हाथॊ में, अब वो जाम नहीं आते
नब्ज़ देख, अब भी हाल जान लेते हैं
क्या करें हम ? जो उनके हाथ नहीं आते
यकीं को कुछ कम हो गये वादे हमारे
दायरऒ के बाहर अब, इरादे नहीं आते
महफ़िल में अब भी शुन्य का जिक्र आता है
कैसे कहें अब गिनतियॊ में हम नहीं आते।
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