सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

ऊंट की करवट, रंगे गिरगिट, तमाम गिटपिट, that's it!

रात आई है, और दिन को खबर करते हैं,
कौन जाने मुट्ठी में कितने लम्हे बचे हैं,
मेरे हालात मेरे होने को असर करते हैं

शरमाते हैं, भरमाते हैं, आइना देखने से कतराते हैं,
सवाल भी बेशरम हैं, रह रह कर सर उठाते हैं,

एक और रात हो गयी, खुद को नज़र ना आ सका,
फिर भी अपने साथ हूँ, कुछ खास हूँ, या खाक हूँ 

ऊँट को बैठना ही है किसी करवट तो बैठेगा,
भावनाएं दबाए रहिये, दिल किसी दिन ऐठेंगा !

कल किस करवट बैठेगा, 'आज' ये सोच कर ऐंठा है,
शफक पर एड़ियों खड़ा है, कैसा चिकना घड़ा है?

युँ गुम होने के लिये जगह कहाँ लगती है
मेरे होने से ही तस्वीर बदलती है

तस्वीर में रहुं पर नज़र् ना आयुं
ये बात अपने रंगों को कैसे समझाऊं

मेरे फलक, मेरे खुदा, कहाँ आपसे हैं ज्यादा जुदा !
नवाज़िश आपकी,रवायत खाक की, यही हैं मेरी दवा.

आप देख सकते तो कहते रौशनी की कमी नहीं,
नज़र आने के लिये फ़िलहाल दूसरी जमीन नहीं !

आप दौड़ते हैं, और खुद को पीछे छोड़ते हैं
इंसान होना भूल गए? क्यों पीठ मोड़ते हैं?

आँखों का अँधेरा गर रात हो जाये
ख़ामोशी से ही सारी बात हो जाये

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

साफ बात!

  रोशनी की खबर ओ अंधेरा साफ नज़र आता है, वो जुल्फों में स्याह रंग यूंही नहीं जाया है! हर चीज को कंधों पर उठाना नहीं पड़ता, नजरों से आपको वजन नजर आता है! आग है तेज और कोई जलता नहीं है, गर्मजोशी में एक रिश्ता नज़र आता है! पहुंचेंगे आप जब तो वहीं मिलेंगे, साथ हैं पर यूंही नज़र नहीं आता है!  अपनों के दिए हैं जो ज़हर पिए है जो आपको कुछ कड़वा नज़र आता है! माथे पर शिकन हैं कई ओ दिल में चुभन, नज़ाकत का असर कुछ ऐसे हुआ जाता है!

मेरे गुनाह!

सांसे गुनाह हैं  सपने गुनाह हैं,। इस दौर में सारे अपने गुनाह हैं।। मणिपुर गुनाह है, गाजा गुनाह है, जमीर हो थोड़ा तो जीना गुनाह है! अज़मत गुनाह है, अकीदत गुनाह है, मेरे नहीं, तो आप हर शक्ल गुनाह हैं! ज़हन वहां है,(गाज़ा) कदम जा नहीं रहे, यारब मेरी ये अदनी मजबूरियां गुनाह हैं! कबूल है हमको कि हम गुनहगार हैं, आराम से घर बैठे ये कहना गुनाह है!  दिमाग चला रहा है दिल का कारखाना, बोले तो गुनहगार ओ खामोशी गुनाह है, जब भी जहां भी मासूम मरते हैं, उन सब दौर में ख़ुदा होना गुनाह है!

जिंदगी ज़हर!

जिंदगी ज़हर है इसलिए रोज़ पीते हैं, नकाबिल दर्द कोई, (ये)कैसा असर होता है? मौत के काबिल नहीं इसलिए जीते हैं, कौन कमबख्त जीने के लिए जीता है! चलों मुस्कुराएं, गले मिलें, मिले जुलें, यूं जिंदा रहने का तमाशा हमें आता है! नफ़रत से मोहब्बत का दौर चला है, पूजा का तौर "हे राम" हुआ जाता है! हमसे नहीं होती वक्त की मुलाज़िमी, सुबह शाम कहां हमको यकीं होता है? चलती-फिरती लाशें हैं चारों तरफ़, सांस चलने से झूठा गुमान होता है! नेक इरादों का बाज़ार बन गई दुनिया, इसी पैग़ाम का सब इश्तहार होता है! हवा ज़हर हुई है पानी हुआ जाता है, डेवलपमेंट का ये मानी हुआ जा ता है।