क्यों टूटे हुए हालात हैं,
क्यों यतीम सवालात हैं
मैं खुद को देख नहीं पा रहा, या
मेरी पहचान बदल गयी है,
या कोई हक़ीकत है,
जो खल गयी है,
जो खल गयी है,
ये आइनों की कोई
साज़िश है , या
मेरे पैरों के नीचे
जमीन बदल गयी है,
हर दिन
मेरी करवटें मुझे बदल रही हैं,
पंख तो उग आये हैं, पर
आसमान नहीं नज़र आता,
इस सफ़र का सामान गुम है,
सच कहूँ, तो गुमसुम!
और साथ किसका है,
फ़ैंसले सारे मेरे हैं, फ़िर भी,
तस्वीर के रंग मुझे छल रहे हैं,
मैं रास्ता बदलता हुँ, या
रास्ते मुझे बदल रहे हैं?
आन्तरिक भावों के सहज प्रवाहमय सुन्दर रचना....
जवाब देंहटाएं