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सौदे सफ़र के!

अपने मज़हब के हम यूँ ही यकीं हो गये,
संज़ीदगी के अपनी ही शौकिन हो गये,
आसमां अपने सारे जमीन हो गये
दिल में डुबो हाथ, देखिये रंगीं हो गये



हाथ रंगने को मिट्टी बहुत है,
फिर भी लोग खून लाल करते हैं
मौत कोई बीमारी नहीं है,
काहे फ़िर मुर्ख इलाज़ करते हैं



आसमां क्यों लोगोँ के मज़हब बनते हैं,
क्यों गुमराह लोग रास्तों को करते हैं
अपने ही हाथ आते मुकरते हैं, क्यों
सफ़र छोटा करने को कुतरते हैं


रास्ते के कंकड़ सब, मील का पत्थर हुए,
जो रुक गये उनके सारे घर हुए!
पर मुसाफ़िर इस हलचल से अंजान है,
सारे घरों का सराय नाम है !


 कहने को तो दुनिया सराय है, 
 समय रहते आये तो चाय है,
 जिद्द है आपकी घर बनाए हैं,
 घांस को गधा है कि गाय है!



मान लो, जान लो, पहचान लो, कोशिश सबकी यही की सच को आसान लो
पर दो पल बदलती दुनिया में, मुमकिन नहीं कि आज को कल मान लो!

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