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अतिशुन्य - गतिशुन्य

“Nothing” is perfect
अर्थात
'कुछ नहीं' ही पुर्ण है
क्योंकि "कुछ नहीं" में कुछ भी नहीं‌ होता
कुछ हो तो वो "कुछ नहीं" नहीं होता
और, मनुष्य के पास
सब कुछ होकर भी
कुछ न कुछ नहीं‌ होता
शुन्य अपने आप में पुर्ण है
उसे बड़ने घटने की आस नहीं
इसी कारण शुन्य का गुणा नहीं भाग नहीं
पर मनुष्य को है आगे निकलने की होड़
करता है शून्य के साथ भी जोड़ तोड़
पर हमारी दृष्टि शुन्यता देखो
हम शुन्य होने का तैयार नहीं
उसकी सहभागिता हमें स्वीकार नहीं
मनुष्य को अपनी गलतियों का अंहकार है
पुर्णता ढूंढता है पर शून्यता से इंकार है
छोटे मुंह, बड़ी बात है
पर न चाहें तो भी
अपने कर्मों पर अपना अधिकार है
और प्रदुषण मस्तिष्क का हो
या वातावरण का
आजकल जो भी हमारा हाल है
शुक्र है
जाने-अंजाने लगता है
हमारा शून्य होने का विचार है

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हाथ पर हाथ!!

मर्द बने बैठे हैं हमदर्द बने बैठे हैं, सब्र बने बैठे हैं, बस बैठे हैं! अल्फाज़ बने बैठे हैं आवाज बने बैठे हैं, अंदाज बने बैठे हैं, बस बैठे हैं! शिकन बने बैठे हैं, सुखन बने बैठे हैं, बेचैन बने बैठे हैं, बस बैठे हैं! अंगार बने बैठे हैं तूफान बने बैठे हैं, जिंदा हैं शमशान बने बैठे हैं! शोर बिना बैठे हैं, चीख बचा बैठे हैं, सोच बना बैठे हैं बस बैठे हैं! कल दफना बैठे हैं, आज गंवा बैठे हैं, कल मालूम है हमें, फिर भी बस बैठे हैं! मस्जिद ढहा बैठे हैं, मंदिर चढ़ा बैठे हैं, इंसानियत को अहंकार का कफ़न उड़ा बैठे हैं! तोड़ कानून बैठे हैं, जनमत के नाम बैठे हैं, मेरा मुल्क है ये गर, गद्दी पर मेरे शैतान बैठे हैं! चहचहाए बैठे हैं,  लहलहाए बैठे हैं, मूंह में खून लग गया जिसके, बड़े मुस्कराए बैठे हैं! कल गुनाह था उनका आज इनाम बन गया है, हत्या श्री, बलात्कार श्री, तमगा लगाए बैठे हैं!!

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