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ग़ूम, गुमां, गुमनाम!

तमाम मसलें हैं किस-किस को बयां करें,
नज़र खुद पर, क्यॊं और क्या गुमां करें !

दर्द अपना है, या कोई भुला हुआ सपना है ,

आप नहीं समझेंगे आपको अभी चखना है! 
कुछ इस तरह से अपनी पहचान होती है ,
तस्वीरॊं से हकीकतें कुछ गुमनाम होती हैं !

तमाम खेल जिंदगी के हमने भी खेले हैं,
सफ़र ज़ारी है, और भरते हुए झोले हैं!

ताक लगाये बैठे हैं सब कि कब मामूली होगे,
आप कहिये अब इस दुनिया से कैसे निभायें!



फ़ुर्सत से बैठे कि फ़ुर्सत कब मिले,
बड़ी तस्सली से अब इंतेज़ार चले!


खबर हो न हो, मुस्तैद अपनी नज़र है,
देखें किस मोड़ आज आपका सफ़र् है


हमारा खुदा कोई नहीं, हम फिर भी दुआ करते हैं,
मर्ज़ खोजेंगे किसी दिन, चलो पहले दवा करते हैं!

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