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सितंबर, 2013 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

सज़ा-ए-मौत!

ताज़ीराते हिंद कहती है सज़ा - ए - मौत है , एक मरता है या इंसानियत की मौत है ? शराफ़त का नया धंधा वसूली है , गुनाह मोटा है कहते हैं सूली है , हाथ अपने खड़े हैं, पर किसी और को फ़ाँसी है , एक ताकत को सज़ा है और, एक को माफ़ी है ? कहते हैं सबक सिखाना जरूरी है , कौन सी शिक्षा रह गयी अधुरी है '? लगता है जैसे कोई मज़बूरी है , फ़िर क्यों इंसा होना जरूरी है ? सुधार नहीं सकते तो सिधार तो , कर्ज़ भारी है जिंदगी उधार लो ! ड़र मौत का रोक देगा गुनहगार को , जैसे रेड़ लाईट रोकती है कार को ? सारे तज़ुर्बे यहीं के , सारी सोच यहीं से , अब कटघरे खड़ी है क्यों नहीं देखते फ़ैसला देने वालों  हैवानियत यहीं पली बड़ी है ?   

उस्ताद शबाना!

ये शबाना है , हिम्मत , लगन को दुनिया में रहने का बहाना है , मुश्किल है फ़िर भी मुस्कराना है , कल की बात बेमानी है , आज़ को आज़ ही सुलझाना है , और तरीके अपने , (मक्का मस्ज़िद, हैदराबाद में शबाना अन्य महिलाओं को ऐरोबिक्स करा रही हैं)‌ ( दुसरी क्लास में शबाना स्कूल छोड़ दी क्योंकि उऩ्हें टीचर से इज़्ज़त नहीं मिली ) दुनिया तो हर तरीका आज़मायेगी , (बुरके की परिभाषाओं को बदलते हुए शबाना) कभी फ़ुसलायेगी , कभी ताकत आज़मायेगी , कभी नाउम्मीदी के सपने दिखायेगी , पर ये दाल यहां नहीं गलेगी , कुछ करना है , नया ही सही , ड़रने कि लिये पूरी जिंदगी पड़ी है , (13-14 साल की उम्र में शबाना अपने को 16 मानकर / जानकर प्ले फ़ॉर पीस ( www.playforpeace.org ) कि सदस्य बनीं और पुराने हैदराबाद की संकरी गलियों में बच्चों को मुस्कराने , हँसाने लगी !) गुड़मॉर्निंग , फ़ोलो मी जैसे कुछ लफ़्ज़ बोल इंग्लिश मीड़ियम स्कुल में भी जानी जाने लगी , ड़र तो था , पर अपने से मुहब्बत कैसे छोड़ दें , हर एक मकाम पर आकर भी , “ बस अब एक और सपना है " सोच ने रोक

क्या बदला इंसान?

देख तेरे व्यापार की हालात क्या हो गयी भगवान ,  कितना बदल गया इंसान ,  कैसे युस करे तेरा नाम , हवा बदल गयी , बरफ़ पिघल गयी , जंगल हुए शमशान कितना बदल गया इंसान ,  थुके कंहा कंहा ये पान , रिश्तों की ये उल्टी गंगा , फ़ेसबूक पर पप्पा मम्मा दोस्त बनाने का ये धंधा , आई मुसीबत दिखता है ठेंगा सच्चाई से दूर हो रहे राहुल , गीता , श्याम कितना बदल गया इंसान कैसे समाचार के धंधे , breaking news पर टिके हैं बंदे बने सब हम सोने के अंड़े , घर में घुस गये दिल के अंधे मरे हुए के बाप से पुँछें , आप का क्या है बयान कितना बदल गया इंसान education जादू मंतर माँ - बाप - बच्चे बने हें बंदर चाहे कितने अच्छे हो नम्बर मोटी रकम हो पहले अंदर खोल खोल शिक्षा के मंदिर चूस रहे सब प्राण कितना बदल गया इंसान बैठा तू मंदिर में भोले तेरे नाम के धंधे खोले black money के भर भर झोले पाप सबके जो तराजू तोले स्वामी , श्री , पंडित के बनते बंगले आलीशान कितना बदल गया इंसान करे पाप भी तेरे नाम , जुँ नहीं रेंगे इनके कान मोटी चमड़ी , खोटे काम पैसा ही

राम नाम सत्य है!

लगता है आप किसी संघ फ़ेमिली से आते हैं ? या उनके बेचे हुए सच आप को फ़ुसलाते हैं ? क्या घड़ियाली आँसू आप को खूब भाते हैं ?  चलो अंग्रेज़ों को आका बनाते हैं वीर सावरकर कहलाते हैं , वैसे आजकल मोदी कहे जाते हैं , हिंदू होना सबको सिखाते हैं , अपने हर शहर में पाकिस्तान बनाते हैं , हम हिंदू धर्म के सेनापति हैं , जात पात हमारी शान है , जात की क्या लड़ाई , सत्य Brahmin/ ब्राह्मण है यही राम है , जात के नाम पर मत लड़ो , नीच जात जाओ सड़ो ! हम कमल तुम कीचड़ , दुर हटो लीचड़ हम रथ वाले, हमसे क्या मुकाबला करोगे , जानी , तमाम शहीद हो गये , तारीफ़ है अड़वाणी जय श्री राम , सब के सब मरोगे हम भगवान के दूत हैं , सारे दंगे इस का सबूत हैं , ( ये सच है कि जितने दंगे आज तक आज़ाद भारत में हुए हैं उनमें मुसलमान मृतकों का बहूमत रहा है , जाहिर है मारने वालों में किस का बहुमत होगा ) मारते वक्त हम उम्र और हैसियत का लिहाज़ नहीं करते , चाहे एहसान जाफ़री हों या गर्भवति शमीना हम अपने इरादों पर ' अटल ' हैं , चलो बच्चों को सच का इतिहास पड़ाते हैं , नाथूराम गोड़से क