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क्या बदला इंसान?



देख तेरे व्यापार की हालात क्या हो गयी भगवान
कितना बदल गया इंसान
कैसे युस करे तेरा नाम,
हवा बदल गयी, बरफ़ पिघल गयी, जंगल हुए शमशान
कितना बदल गया इंसान
थुके कंहा कंहा ये पान,

रिश्तों की ये उल्टी गंगा,
फ़ेसबूक पर पप्पा मम्मा
दोस्त बनाने का ये धंधा,
आई मुसीबत दिखता है ठेंगा
सच्चाई से दूर हो रहे राहुल, गीता, श्याम
कितना बदल गया इंसान

कैसे समाचार के धंधे,
breaking news पर टिके हैं बंदे
बने सब हम सोने के अंड़े,
घर में घुस गये दिल के अंधे
मरे हुए के बाप से पुँछें, आप का क्या है बयान
कितना बदल गया इंसान

education जादू मंतर
माँ-बाप-बच्चे बने हें बंदर
चाहे कितने अच्छे हो नम्बर
मोटी रकम हो पहले अंदर
खोल खोल शिक्षा के मंदिर चूस रहे सब प्राण
कितना बदल गया इंसान

बैठा तू मंदिर में भोले
तेरे नाम के धंधे खोले
black money के भर भर झोले
पाप सबके जो तराजू तोले
स्वामी, श्री, पंडित के बनते बंगले आलीशान
कितना बदल गया इंसान

करे पाप भी तेरे नाम,
जुँ नहीं रेंगे इनके कान
मोटी चमड़ी, खोटे काम
पैसा ही है बस अब शान



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हाथ पर हाथ!!

मर्द बने बैठे हैं हमदर्द बने बैठे हैं, सब्र बने बैठे हैं, बस बैठे हैं! अल्फाज़ बने बैठे हैं आवाज बने बैठे हैं, अंदाज बने बैठे हैं, बस बैठे हैं! शिकन बने बैठे हैं, सुखन बने बैठे हैं, बेचैन बने बैठे हैं, बस बैठे हैं! अंगार बने बैठे हैं तूफान बने बैठे हैं, जिंदा हैं शमशान बने बैठे हैं! शोर बिना बैठे हैं, चीख बचा बैठे हैं, सोच बना बैठे हैं बस बैठे हैं! कल दफना बैठे हैं, आज गंवा बैठे हैं, कल मालूम है हमें, फिर भी बस बैठे हैं! मस्जिद ढहा बैठे हैं, मंदिर चढ़ा बैठे हैं, इंसानियत को अहंकार का कफ़न उड़ा बैठे हैं! तोड़ कानून बैठे हैं, जनमत के नाम बैठे हैं, मेरा मुल्क है ये गर, गद्दी पर मेरे शैतान बैठे हैं! चहचहाए बैठे हैं,  लहलहाए बैठे हैं, मूंह में खून लग गया जिसके, बड़े मुस्कराए बैठे हैं! कल गुनाह था उनका आज इनाम बन गया है, हत्या श्री, बलात्कार श्री, तमगा लगाए बैठे हैं!!

पूजा अर्चना प्रार्थना!

अपने से लड़ाई में हारना नामुमकिन है, बस एक शर्त की साथ अपना देना होगा! और ये आसान काम नहीं है,  जो हिसाब दिख रहा है  वो दुनिया की वही(खाता) है! ऐसा नहीं करते  वैसा नहीं करते लड़की हो, अकेली हो, पर होना नहीं चाहिए, बेटी बनो, बहन, बीबी और मां, इसके अलावा और कुछ कहां? रिश्ते बनाने, मनाने, संभालने और झेलने,  यही तो आदर्श है, मर्दानगी का यही फलसफा,  यही विमर्श है! अपनी सोचना खुदगर्जी है, सावधान! पूछो सवाल इस सोच का कौन दर्जी है? आज़ाद वो  जिसकी सोच मर्ज़ी है!. और कोई लड़की  अपनी मर्जी हो  ये तो खतरा है, ऐसी आजादी पर पहरा चौतरफा है, बिच, चुड़ैल, डायन, त्रिया,  कलंकिनी, कुलक्षिणी,  और अगर शरीफ़ है तो "सिर्फ अपना सोचती है" ये दुनिया है! जिसमें लड़की अपनी जगह खोजती है! होशियार! अपने से जो लड़ाई है, वो इस दुनिया की बनाई है, वो सोच, वो आदत,  एहसास–ए–कमतरी, शक सारे,  गलत–सही में क्यों सारी नपाई है? सारी गुनाहगिरी, इस दुनिया की बनाई, बताई है! मत लड़िए, बस हर दिन, हर लम्हा अपना साथ दीजिए. (पितृसता, ग्लोबलाइजेशन और तंग सोच की दुनिया में अपनी जगह बनाने के लिए हर दिन के महिला संघर्ष को समर्पि

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