एक
मरता है या इंसानियत की मौत
है?
शराफ़त
का नया धंधा वसूली है,
गुनाह
मोटा है कहते हैं सूली है,
हाथ
अपने खड़े हैं,
पर किसी और को
फ़ाँसी है,
एक
ताकत को सज़ा है और,
एक को माफ़ी
है?
कौन
सी शिक्षा रह गयी अधुरी है'?
लगता
है जैसे कोई मज़बूरी है,
फ़िर
क्यों इंसा होना जरूरी है?
सुधार
नहीं सकते तो सिधार तो,
कर्ज़
भारी है जिंदगी उधार लो!
जैसे
रेड़ लाईट रोकती है कार को?
सारे
तज़ुर्बे यहीं के,सारी
सोच यहीं से,
अब
कटघरे खड़ी है
क्यों
नहीं देखते फ़ैसला देने वालों
हैवानियत यहीं पली बड़ी है?
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