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आभा और एक शोध ☺

एक सवाल है, जिंदा, संजीदा, नाज़ुक, नमकीन वजन भी है सृजन भी है, यूँ ही नहीं खड़ा, जिद्द पर नहीं अड़ा, पर ख़त्म नहीं होता, आप नहीं तो कोई और सही, कोई और नहीं तो कोई और सही, सवाल आप का भी शायद, और हमारा भी, अंजान मंज़िलों के मुसाफ़िर का, सहारा भी, सवाल हों, तो रास्ते खत्म नहीं होते, न उम्मीद थकती है, न हौसला पस्त होता है,  सवाल की लाठी एवरेस्ट तक ले जाती है, और सवाल समन्दर के तल से लेकर, चाँद के कल तक ले जाते हैं, सवाल सिर्फ सवाल होते हैं, मुश्किल या आसान, ताकतवर या कमज़ोर, साथ में या ख़िलाफ़त करने, प्यार या दुत्कार, ये आप के ऊपर है, सवाल धुरी हैं, न हो तो हर बात अधूरी है, और कमाल देखिये सवाल क्या चाहते हैं? उनकी क्या मांग है? दिल सवालों का क्या चाहे?... एक खोज, कब क्या क्यों? एक रास्ता, कहाँ, एक शख्श - कौन हर पल एक सवाल हर लम्हा एक शोध, शोध! अभी और क्या? सवाल को और क्या बेहतर साथ हो, एक उम्मीद हो, एक प्यास हो, एक साज़ हो, एक सोज़ हो, मुबारक आपको अभिशोध हो! (Abha for your spirit, for your quest, for your

जय जय जय .....जय है!

सारी तहज़ीब बेशरम, क्या वंदे क्या मातरम ! चौड़ी छाती के भरम, सावधान सब कदम, क्या है आपका धर्म, जबरन वंदे मातरम! 56 इंच वंदे मातरम, शून्य शर्म, अनगिनत भरम, मूरख सब हम! चरणों में वंदन वंदे मातरम घुटने ऊपर नज़र गयी तो, फिसल गयी बेशर्म! जन गण मन, मन चंचल, मज़हबी दंगल, जय हो! तिरंगे के नाम पर भगवे का धंधा, राम का बंदा, देशभक्त गन्दा! सावधान! भारत माता की जय! विश्राम! कहीं भी पेशाब की जाय! तब शुभ नामे जागे तब शुभ आशीष मांगे सुर्ख लाल सडकों पर, मुँह छिपा कर भागे? जन गण मंगल दायक जय हो गाय के नाम से सबको भय हो!! भारत भाग्य विधाता, नहीं मानते तो, बैग पैक करो घर पाकिस्तान का टिकिट आ जाता!

नज़र नजरिया नज़रअंदाज़!!

अंदाज़ इ नज़र से क्या अंदाज़ लगाएं, दिल की सुनें या अपना दिमाग लगाएं! मोहब्बत हरदम एकतरफ़ा ही होती है एक दूसरे से हो ये महज़ इत्तफ़ाक़ है! क्यों अफ़सोस है की आप नज़रअंदाज़ हैं, मोहब्बत ज़ेब में रख घूमने की चीज़ नहीं! इश्क़ है तो इंकार नज़रअंदाज़ क्यों, प्यार एहसास है दिल धड़काता है, सामान नहीं जो ख़रीदा जाता है??? अंदाज़ लगाएं उनकी नज़र से या नज़रअंदाज़ करें, समझ नहीं आता कहाँ से अफ़साना ए आगाज़ करें! बहुत सी अदाएं उनकी ओ एक अंदाज़ ए नज़र, तमाम तूफ़ान पाल रहे हैं और उस पर ये कहर! सच है कि उसने हमें नज़र अंदाज़ किया हमने भी इस सच को नज़रअंदाज़ किया! यूँ अब उनकी नज़रों के अंदाज़ हो गए, नज़र आये नहीं की नज़र-अंदाज़ हो गए? जब से उनका अंदाज़-ए-नज़र देखा, अपने आप को नज़र अंदाज़ कर दिया! अंदाज ए नज़र को नज़रअंदाज़ कीजे, दिल की बात है दिल से समझ लीजे! अंदाज़ नज़र का नज़र अंदाज़ कर दिया, हमने आगाज़ किया उसने अंजाम दे दिया!

हिंसा और हम-आप!

हिंसा क्या है, टॉम और जैरी की, मारापीट को देख, उछलते, बच्चे को देख कर खुश होना! हिंसा क्या है,  जात-पात,मज़हब, अगर वजह है, कि दिल में कम जगह है! हिंसा क्या है, कचरे के ढेर में गैरकानूनी घर बसाये लागों की बेदखली! हिंसा क्या है? मां-बाप नहीं सुनते, बच्चे ने कहा है, उसे किसी ने छुआ है! हिंसा क्या है 4 साल के बच्चे का स्कुल से आना और होमवर्क पर बैठना! हिंसा क्या है, भीड़ में, मैले कपड़ों में कोई पास गुजर गया, आप छिटक कर दूर गए! हिंसा क्या है, आपके घर नौकरानी है कुछ आपका खो गया, कहाँ आपका शक गया? हिंसा क्या है, आपकी माँ है कपडे आपके, और वो धो रही हैं! सालों से! हिंसा क्या है, कभी गाली दी है, और आपकी भी, मां-बहन है! हिंसा क्या है, गुटखा थूकते हुए साइकिल रिक्शे से कहना, ज्यादा होशियार मत बनो! हिंसा क्या है, किसी की जात पूछना, और ख़ुश होना अगर वो आपके जैसा है!  हिंसा क्या है, धार्मिक होना और दूसरे धर्म का मज़ाक उड़ाना! हिंसा क्या है, जो भी हो, बेवजह है! आप को गुस्सा आया? हिंसा क्या है, लड़की देख कर

गुलाम अली!

  देशभक्ति का बड़ा तगड़ा बंदोबस्त है, नफरत के फूलो से गुलशन शगुफ्ता है! कल तक तो हम मोह्ब्बत थे, आज क्यों नफ़रत हैं, हम तो वही हैं,  किसकी ये फ़िरकापरस्त फ़ितरत है?  गुलाम अली सुनना अगर पाकिस्तान है, फिर तो इस देश में लाखों ऐसे अवाम है! हंगामा है क्यों इतना कि कोई गुलाम अली है, कितनी तंग अक्ल है कौनसे कुँए में पली है!??? ये कौन सी गुलामी है कि भीड़ में सोचना है, गुलाम अली को सुनेंगे उसी को कोसना है एक मुल्क दुश्मन है तो वहां के इंसान इंसान नहीं, इंसानियत का गणित इतना भी आसान नहीं एक इंसान सिर्फ अपना मुल्क, मज़हब, जात लगे, बड़े गरीब आजकल मुल्क के हालात लगे सुन के देख लो आप भी गुनगुना देंगे, कानों को कान रखिए क्यों वो गुलाम होंगे? गुलाम अली गाते हैं आप सुन सकते हैं, टांग अड़ाने वालों के घुटने में कान होंगे! जो डर गया सो मर गया - गब्बर सिंह किसी का अक्ल घांस चर गया - आइना! मेरे लिये तो गुलाम अली खास हैं, और कोई बातें निरी बकवास हैं! 

गाय, अखलाक और हम!

गाय!(या बकरी) गाय हिन्दू बकरा मुसलमान, और देश में गधे पहलवान! गाय ने इंसान को मारा, गाय फ़रार बकरा गिरफ्तार! मुबारक हो गाय बकरी निकली, और भेड़चाल भीड़ भेड़िया ! किस गाय पर इलज़ाम लगे, किस इंसान को मासूम कहें! बकरी गाय हो गयी, अख़लाक़ तबाह!    हाथ की सफाई ऐसे, बकरी बनी गाय कैसे!? अखलाक (नैतिकता) अख़लाक़ को कुर्बान कर दिया, अपनी परम्परा का बड़ा नाम ? अख़लाक़ माने फ़लसफ़ा, तरीका, सोच अब आपका हमारा भारत है एक खोज! हमारा अख़लाक़ कहीं खो गया, और ज़मीर गहरी नींद सो गया! अख़लाक़ का खून पानी निकला, वहशियत की निशानी निकला ! एक अख़लाक़ का खून हुआ, एक अख़लाक़ जुनून हुआ! अखलाक का खून मज़हबी ज़ुनून! हम क्या काम मासूमियत जो जान ले ले, आपसे ही आपका इंसान ले ले! क्या हम सिर्फ़ भीड़ हैं,  या हमारी कोई रीड़ है? अर्थी ले कर निकले मानवता कि, और सब कहते, 'राम नाम सत्य है' कुछ सोच कर भीड़ में शामिल हैं, कुछ कम या ज्यादा, पर कातिल हैं!

अखलाक का खून!

आत्मचिंतन, समुद्र-मंथन प्राचीन,  परंपराम, गौरव सहनशीलता, सहिष्णुता, वेद-पुराण,  ज्ञान-गुणज्ञान गीता का दर्शन समझ- संस्कृति शून्य की खोज दशमलव का विज्ञान भारत महान हाथी  के दाँत दिखाने वाले और खाने वाले नरभक्षी, वहशी इंसान सोच हथियार, समझ तलवार  जाति छोटी-बड़ी औरत पैरों में पड़ी गालियों में माँ-बहन का भूत, अहं हिंदू होने का या कमतरी का सबूत कपटी-धूर्त मंदिर में मूर्त पुजारी पहलवान सोने की खान चढावे को बढावा हिंदू को हिंदू का खून गाड़ा दूसरे का खून पानी कल की कहानी गाय माँ और नानी, मासूम जवानी,  गुस्से की निशानी मज़हब का ज़ुनून अखलाक का खून!

वक्त साकी वक्त पैमाना!

इश्क सलामत है कयामत को असर करने को , युँ तो उमर गुजरने को फ़क्त समय काफ़ी है! इश्क़ इबादत है क़यामत को असर होने को, युँ तो रोज़ का दुआ-सलाम काफ़ी है! वक्त साकी है हंसी ये शाम होने दो, लम्हों को छलकता जाम होने दो ! पैमाने में मत ड़ालो हर एक पल को, साथ को मेरे यूँ ही अंजाम होने दो! सफ़र ही बेहतर अपने, चाहे कुछ नाम रहने दो, मुसाफ़िर हमसफ़र हैं, रास्तों को काम रहने दो!   अकेलापन् गम हुआ तो क्या अकेलापन कम होगा? चंद लम्हे आँखॊं का मौसम जरा नम होगा, बदल जायेंगे रास्ते किसी मोड़ पर आकर पलक् झपकते बदला हुआ मौसम होगा! वक्त बीतेगा तो उनका भी गम कम होगा, मुस्कराएंगे तो वही मौसम होगा, 'सेल्फ़ी' ली कभी ज़ुल्फ़ लहरा के तस्वीर में एक खालीपन होगा! दूर है पर इतने भी मज़बुर नहीं‌ हैं, मालिक हैं वो मेरे, हुज़ूर नहीं हैं! नज़दीकियों के इतने मजबूर नहीं हैं, अपने ही हाथों से हम दूर नहीं है! युँ तो हम युँ भी मुस्कराते हैं, और बात है जब करीब आते हैं! हर साँस दिल को एक खबर देती है, हर खबर खुद को ढुंढते नज़र आते हैं!

हम सफ़र!

हो गयी मोहब्बत है तो गले मिल लीजे, बात आगे बड़ गयी तो मुश्किल होगी! इकरार है तो सफ़र साथ कर लीजे, यूँ नहीं कि सपनों में सबर कीजे! नासमझी का एक और नाम मोहब्बत है, वरना इंसा-इंसा में फ़रक कोई करता है? है चार दिन जिंदगी ये तय किये बैठा हूँ,  कहाँ जाऊं कि तुझे दिल किये बैठा हूँ!! हम सफ़र हैं तो कभी मोड़ आयेंगे, हमसफ़र हैं क्या कभी छोड़ पायेंगे! मोहब्बत है तो शिकायत की गुंजाईश नहीं, पसंद न आये ये ऐसी कोई नुमाईश नहीं! मुहब्बत में कोई भी परेशानी जायज़ नहीं, दीवानगी में ऐसी कोई भी रवायत नहीं! कुछ ऐसी हकीकत है, जैसे सपनों‌ की शरारत है, मुस्कराते हैं ऐसे जैसे हम कोई हसीन आदत हैं चलिये हम मोहब्बत को एक नाम देते हैं दुआ दीजिये, आपको ये काम देते हैं! यूँ अपने ज़ज़बातों को अंज़ाम देते हैं,  आप हाँ करिये मोहब्बत नाम देते हैं!

शुभ या सिर्फ़ कामनायें?

अष्टमी, चतुर्थी, नवमी और सफाई की तेरवीं, हमारी कृति है या हमारी महान संस्कृति? कल सब को गणेश की मूर्ति खरीदते देखा, समझ नहीं आया की लोग क्या बेच रहे थे? लगे हैं बड़े बड़े पंडाल से ललचाने, सब को भगवान अपने ख़ास चाहिए!  क्या मूर्ति खरीदना भक्ति बेचना नहीं है, भगवान के नाम सब अंधे काम करते हैं! शीला की जवानी गणपति उत्सव की जुबानी, किसी माथे पर शिकन नहीं, भक्ति की निशानी!! जबरन चंदा ले कर सब इंतज़ाम करते हैं, बड़ी मेहनत से मिट्टी को भगवान करते हैं! छैनी हथौड़ा हाथ से भगवान बनाया किसको खबर मज़दूर दो रोटी खाया! शोर शराबा चारों ओर कि भगवान चाहिए, हर गली हर मोड़ एक दूकान चाहिए साल भर चतुर्थी, पंचमी, अष्टमी, नवमीं, एकादशी, पर उनसे उपजे कचरे की तेरवीं कभी क्यों नहीं? धूम-धड़ाका, शोर-शराबा, बड़ा त्योहार, गली गली कचरे का बड़ा ढ़ेर तैयार!

कौनसे सच?

सच महंगे होंगे तो जरूर बिकेंगे कहिये आप किस बाज़ार टिकेंगे? अकेले सच कोई नहीं लेता,  पहले आप के ही दाम लगायेंगे! आप खबर बस सुनते हैं या चुनते हैं? या सुन कर फिर अपने सच बुनते हैं सच जानने का दौर गया, सच मानने पर सब ज़ोर है! बना बना के सच बेचते है  लाशों पे अपनी रोटी सेंकते हैं बड़े शातिर है शैतान भुखों को मज़हब का चारा फ़ेंकते हैं! कैसे सच अपने आसान करें,  जब सामने झूठ पहलवान करे लाठी ले कर हाथ में कहें,  भैंस का चलना आसान करें! सच का भी मज़हब होता है, जात होती है, गौर कीजे, कोई लाठी उनके हाथ होती है! दिल से मागेंगे तो हर एक दुआ असर होगी, पर ज़रा सच चख के, छूटी कोई कसर होगी! सांच को आंच नहीं, हाथ कंगन को आरसी क्या, ताकत सर चढी तो हिंदी, संस्कृत फ़ारसी क्या? कैसे बनते हैं तमाम सच किस के मन की बात से? तमाम सपने टूटे पड़े हैं, झूठे इरादों को घात से!

इश्क़ बगावत!

प्यार करना मेरी आदत है मतलब ये नहीं कि सबको दावत है! कोई गुनाह नहीं कि सबूत हो, ऐसी उम्मीदों को लानत है! ये जरूर नही कि दोनो को हो,  बेवज़ह न कोई क़यामत हो! नज़रों से कुछ बयाँ न करें,  इस ज़ुबाँ में मेरी ज़हालत है! जो मेरे जहन को जहमत दे उस शय को ये शहादत है! जो मेरी रुह को लानत दे ये बात उसी के बावत है किसी मंजूरी का नहीं मोहताज़ मेरा इश्क भी इक बगावत है!! दिल तोड़ के इतना खुश न बनो कुछ टुकड़े अब भी सलामत हैं !