सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

हिंसा और हम-आप!


हिंसा क्या है,
टॉम और जैरी की,
मारापीट को देख, उछलते,
बच्चे को देख कर खुश होना!

हिंसा क्या है, 
जात-पात,मज़हब,
अगर वजह है,
कि दिल में कम जगह है!

हिंसा क्या है,
कचरे के ढेर में
गैरकानूनी घर बसाये
लागों की बेदखली!

हिंसा क्या है?
मां-बाप नहीं सुनते,
बच्चे ने कहा है,
उसे किसी ने छुआ है!

हिंसा क्या है
4 साल के बच्चे का
स्कुल से आना
और होमवर्क पर बैठना!

हिंसा क्या है,
भीड़ में,
मैले कपड़ों में
कोई पास गुजर गया,
आप छिटक कर दूर गए!




हिंसा क्या है,
आपके घर नौकरानी है
कुछ आपका खो गया,
कहाँ आपका शक गया?


हिंसा क्या है,
आपकी माँ है
कपडे आपके,
और वो धो रही हैं!
सालों से!

हिंसा क्या है,
कभी गाली दी है,
और आपकी भी,
मां-बहन है!

हिंसा क्या है,
गुटखा थूकते हुए
साइकिल रिक्शे से कहना,
ज्यादा होशियार मत बनो!

हिंसा क्या है,
किसी की जात
पूछना, और ख़ुश होना
अगर वो आपके जैसा है!



हिंसा क्या है,
धार्मिक होना
और दूसरे धर्म का
मज़ाक उड़ाना!

हिंसा क्या है,
जो भी हो,
बेवजह है!
आप को गुस्सा आया?

हिंसा क्या है,
लड़की देख कर
मौका ताड़ कर
सीटी बजाना!


हिंसा क्या है,
लड़की आने पर
सोचना,
मुश्किल होगी!
 

हिंसा कया है?
एक बच्चे को दुकान पर
बर्तन मांजते हुए,
नज़र अंदाज़ करना!


हिंसा क्या है?




टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

साफ बात!

  रोशनी की खबर ओ अंधेरा साफ नज़र आता है, वो जुल्फों में स्याह रंग यूंही नहीं जाया है! हर चीज को कंधों पर उठाना नहीं पड़ता, नजरों से आपको वजन नजर आता है! आग है तेज और कोई जलता नहीं है, गर्मजोशी में एक रिश्ता नज़र आता है! पहुंचेंगे आप जब तो वहीं मिलेंगे, साथ हैं पर यूंही नज़र नहीं आता है!  अपनों के दिए हैं जो ज़हर पिए है जो आपको कुछ कड़वा नज़र आता है! माथे पर शिकन हैं कई ओ दिल में चुभन, नज़ाकत का असर कुछ ऐसे हुआ जाता है!

मेरे गुनाह!

सांसे गुनाह हैं  सपने गुनाह हैं,। इस दौर में सारे अपने गुनाह हैं।। मणिपुर गुनाह है, गाजा गुनाह है, जमीर हो थोड़ा तो जीना गुनाह है! अज़मत गुनाह है, अकीदत गुनाह है, मेरे नहीं, तो आप हर शक्ल गुनाह हैं! ज़हन वहां है,(गाज़ा) कदम जा नहीं रहे, यारब मेरी ये अदनी मजबूरियां गुनाह हैं! कबूल है हमको कि हम गुनहगार हैं, आराम से घर बैठे ये कहना गुनाह है!  दिमाग चला रहा है दिल का कारखाना, बोले तो गुनहगार ओ खामोशी गुनाह है, जब भी जहां भी मासूम मरते हैं, उन सब दौर में ख़ुदा होना गुनाह है!

जिंदगी ज़हर!

जिंदगी ज़हर है इसलिए रोज़ पीते हैं, नकाबिल दर्द कोई, (ये)कैसा असर होता है? मौत के काबिल नहीं इसलिए जीते हैं, कौन कमबख्त जीने के लिए जीता है! चलों मुस्कुराएं, गले मिलें, मिले जुलें, यूं जिंदा रहने का तमाशा हमें आता है! नफ़रत से मोहब्बत का दौर चला है, पूजा का तौर "हे राम" हुआ जाता है! हमसे नहीं होती वक्त की मुलाज़िमी, सुबह शाम कहां हमको यकीं होता है? चलती-फिरती लाशें हैं चारों तरफ़, सांस चलने से झूठा गुमान होता है! नेक इरादों का बाज़ार बन गई दुनिया, इसी पैग़ाम का सब इश्तहार होता है! हवा ज़हर हुई है पानी हुआ जाता है, डेवलपमेंट का ये मानी हुआ जा ता है।