अष्टमी, चतुर्थी, नवमी और सफाई की तेरवीं,
हमारी कृति है या हमारी महान संस्कृति?
कल सब को गणेश की मूर्ति खरीदते देखा,
समझ नहीं आया की लोग क्या बेच रहे थे?
लगे हैं बड़े बड़े पंडाल से ललचाने,
सब को भगवान अपने ख़ास चाहिए!
क्या मूर्ति खरीदना भक्ति बेचना नहीं है,
भगवान के नाम सब अंधे काम करते हैं!
शीला की जवानी गणपति उत्सव की जुबानी,
किसी माथे पर शिकन नहीं, भक्ति की निशानी!!
जबरन चंदा ले कर सब इंतज़ाम करते हैं,
बड़ी मेहनत से मिट्टी को भगवान करते हैं!
छैनी हथौड़ा हाथ से भगवान बनाया
किसको खबर मज़दूर दो रोटी खाया!
शोर शराबा चारों ओर कि भगवान चाहिए,
हर गली हर मोड़ एक दूकान चाहिए
साल भर चतुर्थी, पंचमी, अष्टमी, नवमीं, एकादशी,
पर उनसे उपजे कचरे की तेरवीं कभी क्यों नहीं?
धूम-धड़ाका, शोर-शराबा, बड़ा त्योहार,
गली गली कचरे का बड़ा ढ़ेर तैयार!
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