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गाय, अखलाक और हम!

गाय!(या बकरी)

गाय हिन्दू बकरा मुसलमान,
और देश में गधे पहलवान!

गाय ने इंसान को मारा,
गाय फ़रार बकरा गिरफ्तार!

मुबारक हो गाय बकरी निकली,
और भेड़चाल भीड़ भेड़िया !

किस गाय पर इलज़ाम लगे,
किस इंसान को मासूम कहें!

बकरी गाय हो गयी,
अख़लाक़ तबाह!
  
हाथ की सफाई ऐसे,
बकरी बनी गाय कैसे!?

अखलाक (नैतिकता)
अख़लाक़ को कुर्बान कर दिया,
अपनी परम्परा का बड़ा नाम ?

अख़लाक़ माने फ़लसफ़ा, तरीका, सोच
अब आपका हमारा भारत है एक खोज!

हमारा अख़लाक़ कहीं खो गया,
और ज़मीर गहरी नींद सो गया!

अख़लाक़ का खून पानी निकला,
वहशियत की निशानी निकला !

एक अख़लाक़ का खून हुआ,
एक अख़लाक़ जुनून हुआ!

अखलाक का खून मज़हबी ज़ुनून!

हम

क्या काम मासूमियत जो जान ले ले,
आपसे ही आपका इंसान ले ले!

क्या हम सिर्फ़ भीड़ हैं, 
या हमारी कोई रीड़ है?

अर्थी ले कर निकले मानवता कि,
और सब कहते, 'राम नाम सत्य है'


कुछ सोच कर भीड़ में शामिल हैं,
कुछ कम या ज्यादा, पर कातिल हैं!



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हाथ पर हाथ!!

मर्द बने बैठे हैं हमदर्द बने बैठे हैं, सब्र बने बैठे हैं, बस बैठे हैं! अल्फाज़ बने बैठे हैं आवाज बने बैठे हैं, अंदाज बने बैठे हैं, बस बैठे हैं! शिकन बने बैठे हैं, सुखन बने बैठे हैं, बेचैन बने बैठे हैं, बस बैठे हैं! अंगार बने बैठे हैं तूफान बने बैठे हैं, जिंदा हैं शमशान बने बैठे हैं! शोर बिना बैठे हैं, चीख बचा बैठे हैं, सोच बना बैठे हैं बस बैठे हैं! कल दफना बैठे हैं, आज गंवा बैठे हैं, कल मालूम है हमें, फिर भी बस बैठे हैं! मस्जिद ढहा बैठे हैं, मंदिर चढ़ा बैठे हैं, इंसानियत को अहंकार का कफ़न उड़ा बैठे हैं! तोड़ कानून बैठे हैं, जनमत के नाम बैठे हैं, मेरा मुल्क है ये गर, गद्दी पर मेरे शैतान बैठे हैं! चहचहाए बैठे हैं,  लहलहाए बैठे हैं, मूंह में खून लग गया जिसके, बड़े मुस्कराए बैठे हैं! कल गुनाह था उनका आज इनाम बन गया है, हत्या श्री, बलात्कार श्री, तमगा लगाए बैठे हैं!!

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