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जुलाई, 2015 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

इन्साफ की अप्सरा

याकूब चलिए गुनाह तय कर लें, आखिर हम सब फैसला हैं याकूब होना गुनाह है, बजरंगी नाम ही पनाह है संघ फैसला है, कायरों का होंसला है सच्चाई हिन्दू हो गयी है आप अपनी जाती बताइये क्योंकि हो सकता है, आपका सच अछूत हो, अब मुल्क, 'हम और वो' है, वो लोग, देशद्रोही हैं, जिनके सच हम पचा नहीं पाते, आज एक नयी सुबह होगी, आज़ाद सोच की सिकुड़ी जगह होगी एकमत होना तहज़ीब, शुक्र करिये, महंगाई के दौर में कुछ सस्ता हुआ, संविधान, न्याय कुछ खस्ता हुआ, बारिश का मौसम है, गरम चाय की चुस्की लीजिये, "सब को लटका दो" आपका देश आपको मुबारक हो! तीस्ता एक आवाज़ है खामोश नहीं होती सियासत गल्ली का कुत्ता बनी है भौंक रही है, काट नहीं पायी, पर अब पोलिस रेबीजी हो गयी है खतरा बड़ गया है आवाज़ फिर भी कम नहीं है बड़ रही है कुछ कानों पड़ रही है ये देख हुक्मरानों की नीयत और बिगड़ रही है अजीबोग़रीब मंज़र है जो अकेला है वो खड़ा है, बड़ा सच है और सच का बड़ा है और ताकत वाला छटपटाया सा है दाढ़ी में तिनका छुपाने की हज़ार कोशिश तीस्ता हाज़िर हों, सत्यमेव जयते vs सत्यमेव बिकते माया बजरंगी और इ

ज़रा

ज़रा सा उनका मुस्कराना है ज़रा सा हमको पास जाना है ज़रा सी भूल हमसे हो ज़रा सा उनको भूल जाना है! ज़रा सी सख्तियाँ उनकी ज़रा सी नाज़ुक मिज़ाजी, ज़रा से बेशरमियाँ मेरी, ज़रा सी हाज़िर-जवाबी ज़रा से रास्ते दिल के ज़रा सा साथ में चल के ज़रा सी उम्मीदें उनकी ज़रा सी मेरी जिद्दें हैं,  ज़रा सी आवारगी में हम, ज़रा से उनके नखरे हैं, ज़रा है साथ ये हरदम,  ज़रा से फ़िर भी बिखरे है ज़रा से अजनबी हम हैं, ज़रा सो वो हैं पहचाने ज़रा सा दूर से देखें ज़रा करीब कब आएं! ज़रा से हम उनके हैं, जरा से वो हमारे हैं, ज़रा सा बह रहे हैं वो ज़रा सा हम किनारे हैं  ज़रा से ज़ख्म उनके भी ज़रा से दर्द हमारे हैं ज़रा सा इश्क ये ऐसा ज़रा से हम बेचारे हैं ज़रा सा मौसम बेइमान ज़रा सी सफ़र कि थकान ज़रा सा हाथ कंधों पे ज़रा सा काम यूँ आसान

आज इकट्ठा - उसका कच्चा चिट्ठा

सच कहें तो सब माया है और माया कहें तो सब सच! चलिए झोली खाली ही सही सवाल सफ़र में बड़े काम आएंगे! शाम को रुकने को कहिये दिन रात से बचना है कहिये! चलिए कुछ नया करते हैं, कहीं उम्मीद हताश न हो! रास्ते ख़त्म नहीं होते इरादों को ज़रा टटोलिये बच्चे बेबस हैं जिस समाज में क्यों कोई सर उठा जीता है? हर लम्हा तारीख़ होता है, सच ये है, इतिहास गवाह नहीं!

तराजू का सामान

इंसाँ होने की कोशिश हज़ार हैं, पर अकेला बेचारा क्या करेगा! सब अपनी शोहरत के सामान हैं बेवजह ही आईने बदनाम हैं हमसे नहीं होता कामयाबी का खेल, वो फिर भी कहते हैं हम इंसान हैं अपनी तस्वीरों के सब गुलाम हैं और हमको लगता है भगवान हैं अगर सच अद्वैत है तो दोगला है मज़हब का नतीजा बड़ा खोखला है घूमते लिख के डिग्री ओ तजुर्बा माथे पर शायद कोई रख्खे की काम का सामान हैं आपकी तराजू आप की मुबारक हम क्यों किसी के काबिल बनें आचरण के दर्ज़ी तमाम हो गए इंसान नापने के काम आम हो गए

रिश्ते मैं तो हम आपके.....

रिश्ते ज़ंजीर है किसी को किसी को शमशीर हैं मज़ाक हैं किसी को किसी को पूड़ी खीर हैं किसी को मज़बूर करते हैं किसी को मजदूर किसी को चकनाचूर कोई फलता है,कोई पलता है सही रस्ते चलता है कोई घर से भाग निकलता है कोई इंसाँ से रखता है कोई इंसाँ से बचता है किसी को कुत्ता प्यारा है कोई घोड़े का चारा है कोई फूलों में रमता है कोई उड़ान भरता है बिन रिश्ते इंसान नहीं, जरुरत पर भगवान बनाता है मरे को शमशान बनाता है अपना काम आसान बनाता हैै मतलब का सामान बनाता है बुढ़ापे की लाठी घर की शोभा छाती का बोझा कलाई का धागा मस्त माल मख्खन जैसे गाल बाजारू खरीद दहेज़ के साथ मिली मुफ़्त चीज़ और रिश्ते खून के थाली में मिली नून के जी का जंजाल, खाल के बाल बोले सो सुनो कहे सो बनो, सपने बड़े चुनते हैं छोटे घुनते हैं रिश्ते आज़ाद करते हैं इरादों को बाज़ करते है कामयाबी को ताज करते हैं पीठ को हाथ करते हैं अकेले में बात करते हैं रिश्ते बांधते हैं रोकते हैं हर नए कदम को टोकते हैं पर काटते हैं, आपस में बाँटते हैं रिश्ते झगड़ते हैं, बिगड़ते हैं

ये क्या दौर है?

ये भी एक दौर है और वो भी... सच बदल जाते हैं, इरादों का क्या कहें? जहर खुराक बन गयी है जुबाँ नश्तर ये भी एक दौर है आसमाँ नयी ज़मीन है, सर के बल चाल है,  पैर नया सामान हैं ये भी एक दौर है मौसम कमरों के अंदर सुहाना है, ताज़ी हवा अब छुटटी बनी है बड़ा छिछोरा दौर है खूबसूरती अब रंग है, सेहत पैमानाबंद है ये तंगनज़र दौर है आज़ादी क्रेडिट कार्ड है सच्चाई फुल पेज़ इश्तेहार है ये बाज़ारू दौर है मोहब्बत सेल्फ़ी बन गयी है ज़ज्बात ई-मोज़ी हैं तन्हाई अब शोर है ये मशीनी दौर है सब कुछ तय चाहिए न खत्म होता डर चाहिए चौबीस सात खबर चाहिए बड़ा कमज़ोर दौर है भगवान अब फसाद है, मज़हब मवाद है, कड़वा स्वाद है इस दौर का ये तौर है  

कानून की काठी बनाम भैंस की लाठी

आडवाणी मोदी शाह ठाकरे बेगुनाह मेमन गिलानी प्रो.साईबाबा, तीस्ता अपराधी यही सच है यही ताकत सत्यमेव बिकते कर लो जो कर सकते, मुँह में साइलेंसर आखों में वाइपर सच वही जो मेरे फ्लेट, मेरी गाड़ी के रस्ते न आये भाई हम सीधे साधे लोग है हाँ हाँ हम भी जो हो सके करते हैं गीले और सूखे कचरे के लिए हमने अलग डब्बा रखा है अब हर कोई तो... टीवी चैनल पे तो ऐसी कोई बात नहीं हम कैसे आपकी बात मान लें अब सुप्रीम कोर्ट ने बोला है तो हाँ देखा तो था, वो दातृ की पचास करोड़ की प्रॉपर्टी, बड़े लोग है....हैं हैं हैं हमें अपनी जिंदगी जीने दो हमें नहीं समझता... हमें तो सब ही अपराधी लगते है अब क्या करेंगे.......

बादल बारिश मौसम

दिखती नहीं है बारिश पर छू जाती है, चलो वहां रुकें .. सही में कहीं दूर से,  जैसे अनजाने सुरूर से, आया कितने गुरुर से, बादल वहीं पे, सबको  सरोबर करके  हसीं कारोबार करके उदास होते, लम्हों को प्यार करके बारिश  है कहीं, हाथ में डोर लिए,  अपना सच छाप के, अपना रास्ता नापते, मौसम झट से , कल को छोड़ के,  होकर नये मोड़ पे, सब के सच बदलती जमीँ