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अगस्त, 2015 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

इति हँस!

इतिहास है या किसी खास की बात है, इसमें मामूली कुछ भी नहीं, यानी खासी बकवास है! इतिहास गवाह है, पर उसने कभी गीता पर हाथ नहीं रख्खा! बाकि आप खुद समझदार हैं! आपने कौनसा इतिहास पड़ा है, उस सच्चाई के आप गुलाम हैं हमारी छाती छप्पन करने तमाम सच हमारी शान हैं, यही इतिहास का विज्ञान है! इतिहास के बहादुर कौन, और कौन गुम हैं पन्नों से, गुंड़ागर्दी का पुराना नाम, शूरवीर, चक्रवर्ती है! इतिहास मज़ाक है पर कौन करता है किसका घड़ा है और कौन भरता है! क्या हमारा गौरव हमारा इतिहास्य है? किताबों तले दफ़न कई मुँह बंद साँस है? दिन की क्या बात करें, गुजरे सदियाँ की है कहानी, नादानी है यकीन करना,  किसी आँखों का पानी! सूना है सच बड़ा कड़वा होता है, इतिहास कुछ और है, चख लीजे? इतिहास महापुरुषों की अमर कहानी है, और जाति, जुल्म, रंगभेद उनकी नादानी! आप अपने इतिहास के सच्चे हैं, यानी जिन्दगी के खेल में कच्चे हैं! आज बदलते हैं, इतिहास  बदलते हैं,  आईनों की जगह तस्वीरें लगती हैं अब!

आज़दी क्या?

क्या आप आज़ाद हैं, या अपनी जंजीरों के बर्बाद! (धर्म के नाम पर तोड़-फ़ोड, हत्या-बलात्कार, आसाराम, राधे मां और तमाम बाबा और स्वामी) कहिये कि कैसे सिर्फ हाँ बन जाएं, बेहतर है इससे कि बेज़ुबाँ बन जाएँ! (आर.टी. आई कार्यकरताओं की सरे-आम हत्याएं) अंधविश्वास विज्ञान है, मेरा भारत महान है! (झारखंड़ में ११ महिलाओं को ड़ायन बोलकर हत्या) आज़ाद हो इसपे शक मत करो, नासमझी गुनाह है इस दौर का? क्यूँ इस तरह आज़ाद हैं, सवालों वाले बर्बाद हैं? सर घुटनों में रखिये तो आप आज़ाद हैं जो सीधे खड़े है उनको हुकूमत सैयाद है (तीस्ता के पीछे बड़ी सरकारी ताकत) आज़ादी कहाँ हैं, ये प्रश्न जहां है! (हज़ारों जनसंघर्ष में‌ लगे कार्यकर्ता) बड़े आज़ाद हैं हुक्मरान सारे, ख़ासी मनमर्ज़ी शौक हैं उनके! (हमारे राजनेता) बड़ी मजबूरी है सबको आज़ाद दिखने की, और ये ड़र कि कहीं ज़ादा आज़ाद न दिखें! ( हम में से कई जो सरकारी / बदमाशी ताकत के सामने भीगी बिल्ली , रिश्वत देते वक्त मजबुर और बाद में गप करते वक्त गुस्सैल और देश भक्ति का नाम लिया तो ५६इंच सीने वाले बन जाते हैं)

जिंदगी साली मौत की घरवाली

हम को ही हम से छीनता है ये ज़िन्दगी का कमीनापन हैं! जिंदगी पर मेरे बड़े एहसान हैं, कैंसर के बदले मुस्कराहटें दी हैं! जीने का और बहुत मन है सिगरेट जैसी बड़ी बुरी लत है! हमें नहीं लड़नी कोई भी लड़ाई जिन्दगी अखाड़ा है ये बात पहले नहीं बतायी! हाँ नहीं तो! मौत कितनी पेटू,कितनी अघोरी है, तमाम ज़िन्दगी सूत के भी भूखी है! ज़िंदगी हाथ धो के पीछे पड़ती है, मौत से मिलीजुली साज़िश लगती है जब देखो बीमारी परस देती है ज़िन्दगी बड़ी बेगैरत मेज़बान है ज़िंदगी मौत के बीच इंसाँ फुटबॉल है, एक ने किक किया दूसरी तरफ गोल है! कहते हैं शरीर बस आत्मा का खोल है, पर मूरख आत्मा क्या जाने, बर्फी चौकोर लड्डू गोल है? कहते हैं आत्मा अमर शरीर नशवर है बेईमान सप्लायर है अगर घटिया घर है? ज़िन्दगी साली मौत की घरवाली निकली, निकला मतलब तो मुँ पलट के चल दी!! (उन जुझारुओं की झुंझलाहट को समर्पित जिन्हें अपनी हिम्मत और लगन केंसर जैसी फ़ालतू बीमारियों से लड़ने और उनके रस्ते अड़ने में लगानी पड़ती है)

क्या कहेंगे?

(दोस्त- एक और लड़ाई केंसर में खो गयी, मेरी एक दोस्त जो इतने सालों इस लड़ाई में मेरे साथ थी _ _ _हकीकत को सपनों में ओझल होते हमने देखा है _ _ _ मैं -इस क्षति को हम क्या समझेंगे, सुनने कि बस एक कोशिश है ये अनुराग) हौंसले गुम हैं इश्तेहारों में कहीं, जो खबर है उसकी जगह कहाँ रस्ते गुज़र गए और चंद हमसफ़र भी, मंज़िलें का क्या करेंगे मुसाफिर? साथ भी है, मुश्किलों में हाथ भी हैं, जो बात खुद से करनी है उसका क्या? अफ़सोस बहुत है उन के गुजर जाने का याद आती है अश्कों में और मुस्करा देते हैं! दर्द समझने के और, और, कुछ समेट रखने के वो एक खालीपन सा है जो अनछुआ सा है! ज़िन्दगी ज़ीनी भी है और पीनी भी है, चादर ओढ़ी जो है जो भीनी सी है! नज़र आ जाएंगे हम जो आप गौर करें, मेरी मुश्किलों से मेरी पहचान न हो! वो लम्हे जब हम खुद को न देख पायें, जो करीब है वो भी बड़े दूर नज़र आयें! काश मुश्किलें मेहमान होतीं,  ज़िंदगी थोड़ी आसान होती!

दर्द है!

(दोस्त - कुछ ज़िंदगी को महसूस करने वाला सुनाओ? ) दर्द से दोस्ती नहीं करनी, और दुश्मनी होती नहीं हमसे, मासूम बन गए हैं ऐसे सब दर्द हमारे हिम्मत रखो मत कहिये, कुछ काम की नहीं, बस दो लम्हे आकर साथ मुस्करा दो मैं बीमार नहीं, बीमारी जबरन पास है, प्यास थकी जरूर है पर कम नहीं हुई! मैं आसान हूँ पर मुश्किल में पड़ी हूँ, मैंने सीखा ही नहीं यूँ बेबस होना! (दोस्त - दिमाग में घुस गये हो क्या?) आपने रास्ता दिया, ज़ज्बातों से वास्ता किया, थोडा बहुत हम सब ने एक दूजे को ज़िया है! दर्द आसान हैं गर कोई सुन ले, कम नहीं होते पर संभल जाते हैं! गुजर रहे थे यहीं कहीं एहसास आपके, मैं दुआ कर रहा था तो हाथ आ गए! हम कुछ भी नहीं और आप भी, न हमको ही खबर है, और न आप को कुछ पता दर्द कितना अकेला कर देते हैं, अपना ही साथ देते नहीं बनता! हम भी जोश हैं, मज़ा हैं, अंदाज़ हैं, साथ रहते हैं सब पर कोई नहीं गिनता तमाम नसीहतें मर्ज़ की और मिज़ाज़ के नखरे, किसी का भी साथ देते नहीं बनता ! (एक दोस्त जो केंसर का दरिया पार कर चुकी है, और उसके रेड़ियोधर्मी इलाज़ के साईड़-एफ़ेक्ट्स से अक्सर किसी दर्द से जूझती र

राम, धरम और एक आसा!

आसा अब राम जपे या अपने कान पकड़े, पैर छूने गये तो बाबा ने गरेबान पकड़े! धर्म का नाम बलि है, गवाहों को स्वर्ग मिली है!  आसा के तो राम हो गए, बाकी सब 'हे राम!हो गए ॐ जय जगदीश हरे, आसा से सब राम मरे! आसा ने कितनों को राम का प्यारा किया, मर गए सब जिनने आसा से किनारा किया  रामप्यारे, वारे न्यारे, भक्त बधारे, मूरख सारे सब झूठी आसा के मारे! राम के बंदे हैं या राम के धंधे मस्ज़िद की कब्र पर मंदिर बनाएंगे, इससे ज्यादा घटिया लोग कहाँ पाएंगे  मज़हब इंसाँ हमको करता है थोडा कम, धर्म धंधा है कामयाब गरीब गले का फंदा! इस मुल्क में अब राम की शरण है, या आपातकालीन मरण है!