(दोस्त - कुछ ज़िंदगी को महसूस करने वाला सुनाओ? )
और दुश्मनी होती नहीं हमसे,
मासूम बन गए हैं ऐसे सब दर्द हमारे
हिम्मत रखो मत कहिये, कुछ काम की नहीं,
बस दो लम्हे आकर साथ मुस्करा दो
मैं बीमार नहीं, बीमारी जबरन पास है,
प्यास थकी जरूर है पर कम नहीं हुई!
मैं आसान हूँ पर मुश्किल में पड़ी हूँ,
मैंने सीखा ही नहीं यूँ बेबस होना!
(दोस्त - दिमाग में घुस गये हो क्या?)
आपने रास्ता दिया, ज़ज्बातों से वास्ता किया,
थोडा बहुत हम सब ने एक दूजे को ज़िया है!
दर्द आसान हैं गर कोई सुन ले,
कम नहीं होते पर संभल जाते हैं!
गुजर रहे थे यहीं कहीं एहसास आपके,
मैं दुआ कर रहा था तो हाथ आ गए!
हम कुछ भी नहीं और आप भी,
न हमको ही खबर है,
और न आप को कुछ पता
दर्द कितना अकेला कर देते हैं,
अपना ही साथ देते नहीं बनता!
हम भी जोश हैं, मज़ा हैं, अंदाज़ हैं,
साथ रहते हैं सब पर कोई नहीं गिनता
तमाम नसीहतें मर्ज़ की और मिज़ाज़ के नखरे,
किसी का भी साथ देते नहीं बनता !
दर्द कितना अकेला कर देते हैं,
अपना ही साथ देते नहीं बनता!
हम भी जोश हैं, मज़ा हैं, अंदाज़ हैं,
साथ रहते हैं सब पर कोई नहीं गिनता
तमाम नसीहतें मर्ज़ की और मिज़ाज़ के नखरे,
किसी का भी साथ देते नहीं बनता !
(एक दोस्त जो केंसर का दरिया पार कर चुकी है, और उसके रेड़ियोधर्मी इलाज़ के साईड़-एफ़ेक्ट्स से अक्सर किसी दर्द से जूझती रहती हैं, एसे ही एक दर्द के दौरान वाट्स-एप पर हुई बातचीत में दर्द को समझने और उसके इर्द-गिर्द के एहसासों को पकड़ने की कोशिश )
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