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क्या कहेंगे?


(दोस्त- एक और लड़ाई केंसर में खो गयी, मेरी एक दोस्त जो इतने सालों इस लड़ाई में मेरे साथ थी _ _ _हकीकत को सपनों में ओझल होते हमने देखा है _ _ _
मैं -इस क्षति को हम क्या समझेंगे, सुनने कि बस एक कोशिश है ये अनुराग)

हौंसले गुम हैं इश्तेहारों में कहीं,

जो खबर है उसकी जगह कहाँ

रस्ते गुज़र गए और चंद हमसफ़र भी,
मंज़िलें का क्या करेंगे मुसाफिर?

साथ भी है, मुश्किलों में हाथ भी हैं,
जो बात खुद से करनी है उसका क्या?



अफ़सोस बहुत है उन के गुजर जाने का
याद आती है अश्कों में और मुस्करा देते हैं!


दर्द समझने के और, और, कुछ समेट रखने के
वो एक खालीपन सा है जो अनछुआ सा है!

ज़िन्दगी ज़ीनी भी है और पीनी भी है,
चादर ओढ़ी जो है जो भीनी सी है!


नज़र आ जाएंगे हम जो आप गौर करें,
मेरी मुश्किलों से मेरी पहचान न हो!

वो लम्हे जब हम खुद को न देख पायें,
जो करीब है वो भी बड़े दूर नज़र आयें!


काश मुश्किलें मेहमान होतीं, 

ज़िंदगी थोड़ी आसान होती!

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हाथ पर हाथ!!

मर्द बने बैठे हैं हमदर्द बने बैठे हैं, सब्र बने बैठे हैं, बस बैठे हैं! अल्फाज़ बने बैठे हैं आवाज बने बैठे हैं, अंदाज बने बैठे हैं, बस बैठे हैं! शिकन बने बैठे हैं, सुखन बने बैठे हैं, बेचैन बने बैठे हैं, बस बैठे हैं! अंगार बने बैठे हैं तूफान बने बैठे हैं, जिंदा हैं शमशान बने बैठे हैं! शोर बिना बैठे हैं, चीख बचा बैठे हैं, सोच बना बैठे हैं बस बैठे हैं! कल दफना बैठे हैं, आज गंवा बैठे हैं, कल मालूम है हमें, फिर भी बस बैठे हैं! मस्जिद ढहा बैठे हैं, मंदिर चढ़ा बैठे हैं, इंसानियत को अहंकार का कफ़न उड़ा बैठे हैं! तोड़ कानून बैठे हैं, जनमत के नाम बैठे हैं, मेरा मुल्क है ये गर, गद्दी पर मेरे शैतान बैठे हैं! चहचहाए बैठे हैं,  लहलहाए बैठे हैं, मूंह में खून लग गया जिसके, बड़े मुस्कराए बैठे हैं! कल गुनाह था उनका आज इनाम बन गया है, हत्या श्री, बलात्कार श्री, तमगा लगाए बैठे हैं!!

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