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क्या जानें, कौन माने!!

जो आंखें देखती हैं, वही आंखें दिखती हैं! बात किस की है? ये सवाल किसका है? ये हाल किसका है? यूँ मलाल किसका है? जो देख रहा है, उसे देखते हैं! सच, अलग अलग देखते हैं! एक ही बात कहाँ है, इतना बड़ा जहां हैं? आप कहाँ पहुंचे, और वो रास्ता कहाँ है? मुसाफ़िर कई हों, रास्ते पर, पर सफ़र एक नहीं, असर? अंजाम? नज़र देखती है, नज़रिये से, ये ही ज़रिया है, आपका क्या? कहाँ पहुँचे हैं? पहुँचना कहाँ हैं? किस बात से तय? ओ तय बात क्या है? हूँऊं, ओह, क्या, वाह, अच्छा, शायद, याने, हज़ार ख़याल मन में, क्या जानें, कौन मानें?

जाने दो!

"ऐसे कैसे जाने दें" ये सोच न आने दें रोकें अपने आप को टोकने से और कदमों को जाने दें आगे गहराई है, डूबने, चढ़ने की, सच्चाई है, कड़वी लगाम नहीं, चाल बदलना, रणनीति है, न की 'हाथ खड़े' न ही 'चिकने घड़े' मढ़ें, अपने सच, गढ़ें नहीं, लड़े नहीं अपने रस्तों से, बदलें, गिरें संभलें मुड़ें, जुड़ें, क्षितिज से वहाँ जहाँ होती है ज़मीन आसमान आसमान ज़मीन सच सही गलत अच्छे बुरे बीच घुटे नहीं! आपकी राय, एकतरफ़ा हो जुटे नहीं, नकारने सपना, दमतोड़ता कोने में आपके दिल के, "जाने दो" ये सोच न आने दो!

सुबह सवाल!

जो हाथ में नहीं वो साथ क्यों मुश्किल छोड़ना ये बात क्यों? क्यों कहते हैं रास्ते साथ नहीं, रास्ते चलते हैं और आप नहीं? सवाल क्यों शिकार बन रहे हैं? जवाब क्यों हिसाब बन गए हैं? बात अपनी ही अपने से करिए, आप ही रस्ता, अपना यकीं करिए!! जो पुराना नहीं क्या वो नया है? क्या जुड़ा ओ क्या खो गया है? आपके कदमों में रास्ते छुपे हैं, क्या आप अपनी ज़मीं से जुड़े हैं? सफ़र में दर्द भी और गर्त भी, नए मोड़ और हमसफ़र भी! क्यों अपने ही इरादों से लड़ते हैं? ग़ुमराह हक़ीकत, आगे चलते हैं!

रास्ता मुसाफ़िर!

मुसाफ़िर, कोई रास्ता नहीं है! आपके कदमॊं कि निशान हैं बस! मुसाफ़िर, कोई रास्ता नहीं है!! आप चलिए और वही आपका रास्ता है,  आगे बढिए और अपना रास्ता बनिए,  मुड कर देखिए और जानिए, आ पहुँचे, वो मोड़? फिर कभी उस पर न जाना हो, मुसाफ़िर, कोई रास्ता नहीं है समंदर में किसी नौका की टिमटिमाती रोशनी है! बस! - एंटोनियो मचाडो की मशहूर स्पेनिश कविता 

रास्ते खोज़ के!

उंचे उठिए , विशाल रचनाकार और दुनिया आप के साथ कम होइये और सब और थोडे कम हो जायेंगे उभरिए , विशाल रचनाकार अपनी बेशकीमती को गले लगाइए थोड़ा और कमर कसिए और कायनात भी उभर जाएगी ठहरिए , विशाल रचनाकार आपकी ताकत आपके अंदर है , अपनी संभावना से न डरें , डरावनी सरहद को लांघ लें हिम्मत से आगे बढें , विशाल रचनाकार आगे महानता है , दिलदार होइए और आपकी रूह गुनगुनाएगी सच रहिए , गज़ब महारथी रास्ते कभी खत्म नहीं होते अपनी मुस्कराहट से बल लीजिए नए मोड़ों से गुजरते वक्त साथी हो जाइए , सब महारथी , साथ में तेज है , ताकत है , एक दूसरे का आसमान बनिए ये साथ सब को बुलंद करेगा क्यों कम होते हैं , प्रिय महारथी अपने बचपन को गौरवान्वित करिए , अपने सच को पालिए , जी लीजिए , निडर , निर्भीक बनिए , शोर करिए ! - एक इंग्लिश रचना से अनुवादित जिसके कवि का नाम ज्ञात नहीं!

आज़ादी किस से!!

जिसकी ताकत उसके अच्छे दिन, झूठ मर्ज़ी के सच बनाने के दिन , जुर्रत! क्यों आज़ादी की बात करते हो? इन सवालों से आप आज़ादी बर्बाद करते हो!! समझिए, बूझिए, पूछिए, जूझिए! सवाल ही सिर्फ़ सच पहचानते हैं!! आज़ादी का ऐसा नशा, जंज़ीरें नहीं दिखतीं! तस्वीरों से खुश हैं सब, फूटी तकदीरें नहीं दिखतीं! तमाम फ़कीरी मज़हबी लकीरों में सिमटी है, उसूलों की किसी को गऱीबी नहीं दिखती? जो हमराय नहीं होता वो रक़ीब है, कब से सोच के हम इतने तंग हो गए? ये कैसी आज़ादी आयी, सब के सब रज़ामंद हो गए? मुगालते में सब के हम आजाद हैं, यकीं उनका जिनके सर पर ताज है! किसकी मज़ाल जो कहे आज़ादी नहीं है? मन में आये वो बोलोगे देशद्रोही कहीं के?

अतिका और रज़ाबन्दी!

हमारी दुआ के ज़रा करीब हो गए, हालात ऐसे अजीबोगरीब हो गए! मुल्क के अपने जो ग़रीब हो गए? दुनिया के थोड़े करीब हो गए! मिट्टी इंसानियत की मुबारक़ हो, नए आप के सब दस्तूर हो गए! सरहदें कसूर बनेंगी ये कब सोचा, वो ओर! जो लकीरों के फ़क़ीर हो गए! हार नहीं मानी, ये उनकी परेशानी है, जिद्द तो थी ही, थोड़े हम शरीर हो गए!! हालात-ए-अंजाम के नज़दीक थे, अपने खातिर हम बेपरवा हो गए! मुसीबत बड़ी, फिर भी काम हो गए, एक दूसरे को हम आसान हो गए! शिकन पेशानी के सब खत्म नहीं हैं, फिर भी चेहरे हमारे मुस्कान हो गए!! (Atiqa & Raza are Peace Activist and dear friends from across. They have been through very difficult times last 12 months. They are together and travelling. It is a blessing☺️)

सेल्फ़ी सही!

कान सुनते हैं, आप गुनते नहीं? सोच परोसी वाली आप बुनते नहीं? इरादे बुलंदी के, और आप चुनते नहीं? ये क्या दौर है, आइनों के दुसरीं तरफ कोई और है! उसी की सोच है उसी का ज़ोर है!! उतना ही मानते हैं हम बस उतना ही जानते हैं! बस यही समझ है! खोज़, सर्च हो गई है, एल्गोरिथम का कर्ज हो गई है? जो देखते हैं, वही बारहा नज़र आता है, एक समीकरण, हमसे भेड़-चाल चलवाता है! और ये भी सच है? उंगलियाँ हमारा दिल बनी हैं! छू लेती हैं, बस वही जगह सटीक, जो हुक़्म मेरे आका! अब दिल को पाउडर-क्रीम हमारी 5.3 टचस्क्रीन! क्या ये भी आज़ादी है? अब हम से बेहतर हम को कौन जानेगा, सेल्फ़ी से ही हमें पहचानेगा! सवाल-जवाब, तलाश,  मैं - कौन, क्यों, कैसे? ये सवाल क्या खास? हर लम्हा, हर जगह,  हर मौके, मैं वही हूँ,  सेल्फ़ी सही हूँ!!

सचमुच! काफ़ी बड़ा है?

भारत एक बड़ा देश है....निहायत ही, महज़ आकार में फक्त प्रकार में, सबसे छोटा क्या है? हमारा दिल? या हमारी सोच? बड़ी स्पर्धा है दोनों के बीच, परंपराएं कितनी, बताती हैं एक सोच बड़ी नीच! और सोच की क्या बात है, सोच सती है, अबला है, कमाल की बला है, पैदा हो न हो, तय फैसला है! सोच द्रोपदी का चीर है, दोनों ओर मर्दानगी तस्वीर है! सोच ही समझ है, सच है, राम नाम सत्य, सीता अस्त! दिल की तो मत पूछो इसमें आने को, जाती ऊँच, रंग पूछ, लड़की करो कूच... नेकी? पर पहले पूछ? जात, धर्म? कर्म? कहाँ है मर्म? आंखें खोल, किसी भी शहर, दो-चार कदम चलिए, और मिलिए, हासिओं से (मार्जिन), कचरों के ढेर से  तरक्की की दुसरीं ओर, बसाए हुए, सुलभ शौचालय  और दुर्लभ विद्यालय पर कतार लगाए आपके बर्तन, झाडु-पोंछा से, आभारी! उम्र लंबी है, कभी आऐगी बारी, बस मेहनत करते रहो परिश्रम का फल मीठा है, प्लीज़ डोंट माइंड, ज़रा झूठा है!! आपकी शराफ़त  न ही लुटा है!!

राय-मशवरा?

ताजा खबरों से क्यों बदबू आती हैं? किस तहज़ीब की बात बतलाती है? बद से बदतर हैं, ये हालात, अक्सर हैं! आज सड़क पर थे, कल आपके घर पर हैं? अपने से क्यों दूर हैं, क्यों भेड़चाल मजबूर हैं? सवाल पूछना भूल गए? कही-सुनी के शूर हैं? जानकारी के उस्ताद हैं, किनारों के गोताखोर, जो नज़र में सब सच है, बस उसी का सब शोर! खुद से खामोशी है, या अजनबी मदहोशी? नज़र नही आते कत्ल या नज़रिया बहक गया? बाज़ार है, सामान भी, सच की दुकान भी, ख़रीद रहे हैं सब, ओ बस वही बिक रहा है!! डर का ख़ामोशी, न्यूज़ चैनल के शोर, तिनके डूब रहे हैं, किसके हाथों डोर? दिमाग प्रदूषित है और  सोच कचरा बनी है, न जाने इंसान ने क्या क्या  सच्चाई चुनी है! सूफ़ियत तमाशा बन गयी है, फ़कीरी धंधा बनी है, बाज़ार ख़ुदा हुआ है ओ सच्चाई दुकान है!

ज़िन्दगी ख़ाक की!!

ज़िन्दगी दावत है, किसी को... बग़ावत है किसी की ? आदत है, किसी की मुश्किल, और कोई आसान, काम किसी का, नाम कोई बदनाम, मुफ़्त पहचान सरेआम, अकेले, भीड़ में, दौड़ रोज़ की, होड़, काहे? बेपरवाह, आगाह? अपने सफ़र से, दोस्ती, अजनबी मुसाफ़िर से, चलते रास्ते आपके, भांप के, नाप के किसी और के? किस छोर के? सहारे, या यकीन मंझदारे? सह रहे हैं या बह रहे हैं, ख़ामोश या कह रहे हैं? अपनी बात,  ज़िंदगी ज़ज़्बात, क्या परवा साख की? आखिर ज़िन्दगी ख़ाक की!!

मैं और मेरा सरमाया!

मेरा "मैं" होना, और "मैं" मेरा होना, जो मैं हूँ, पहले से, होते हुए, एक सफर है, सीखे को भुलाने की, जो 'यही होता है' समझने की, उसके आगे जाने की, "जाने दो", जाने दूं? कभी ये सवाल है, सवाल हैं? कभी एहसास, हर लम्हा मैं खुद को सुनती हूँ, गुनती हूँ, बुनती हूँ, कभी मैं हूँ, कभी मैं नहीं, फिर भी, मैं ही हूँ मेरे होने में, पाने में कभी खोने में, पूरी एक दुनिया नज़र आती है, जब मैं,खुद में गहरे जाती हूँ, क्या सच, क्या माया, जो सोचा कहाँ से पाया, फंतासी या सपना आया? क्या है मेरा सरमाया!? किसे ख़बर!? (ये दोस्त निष्ठा की इंग्लिश अभिव्यक्ति का ट्रांस्पोइट्रेशन है, तस्वीरें भी उसी की नज़र और कैमरे से हैं)

मुसाफ़िर, मेहमान, मेज़बान

मुसाफ़िर भी हैं,  मेहमान भी, और हम ही मेज़बान भी! समंदर को देखिए, दो लम्हे साथ, नज़र आएगा बहुत, समझ जाएगी बात!! एक एक बूंद की मेजबानी, अनगिनत जीवन को रवानी,  हवा ओ पानी, कहाँ कोई शिकवा, शिकायत? जब मर्ज़ी, आईए समा जाईए! लहरों के संग संग सफ़र, मंज़िल से बेखबर, चलने पर नज़र,  कहाँ कोई घर,  साथ बहुत कुछ, ओ सब हमसफ़र, वही नज़रिया, वही असर! साहिल के मेहरबान, हर लहर संदेश,  दो पल के मेहमान, सब चल रहा है, या बदल रहा है! हर घड़ी, पंछी को  पूछिए,  या सीप को! रेत- रेत ये विज्ञान! मुसाफ़िर,  मेहमान, मेज़बान अलग अलग हैं? या सच्चाई के अनेक नाम?