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जाने दो!


"ऐसे कैसे
जाने दें"
ये सोच
न आने दें
रोकें
अपने आप को
टोकने से
और कदमों को जाने दें
आगे
गहराई है,
डूबने, चढ़ने की,
सच्चाई है,
कड़वी
लगाम नहीं,
चाल बदलना,
रणनीति है,

न की
'हाथ खड़े'
न ही
'चिकने घड़े'
मढ़ें,
अपने सच,
गढ़ें नहीं,
लड़े नहीं
अपने रस्तों से,
बदलें,
गिरें
संभलें
मुड़ें,
जुड़ें,
क्षितिज से
वहाँ
जहाँ
होती है
ज़मीन आसमान
आसमान ज़मीन
सच
सही गलत
अच्छे बुरे
बीच
घुटे नहीं!
आपकी राय,
एकतरफ़ा हो
जुटे नहीं,
नकारने
सपना,
दमतोड़ता
कोने में
आपके
दिल के,
"जाने दो"
ये सोच
न आने दो!








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साफ बात!

  रोशनी की खबर ओ अंधेरा साफ नज़र आता है, वो जुल्फों में स्याह रंग यूंही नहीं जाया है! हर चीज को कंधों पर उठाना नहीं पड़ता, नजरों से आपको वजन नजर आता है! आग है तेज और कोई जलता नहीं है, गर्मजोशी में एक रिश्ता नज़र आता है! पहुंचेंगे आप जब तो वहीं मिलेंगे, साथ हैं पर यूंही नज़र नहीं आता है!  अपनों के दिए हैं जो ज़हर पिए है जो आपको कुछ कड़वा नज़र आता है! माथे पर शिकन हैं कई ओ दिल में चुभन, नज़ाकत का असर कुछ ऐसे हुआ जाता है!

मेरे गुनाह!

सांसे गुनाह हैं  सपने गुनाह हैं,। इस दौर में सारे अपने गुनाह हैं।। मणिपुर गुनाह है, गाजा गुनाह है, जमीर हो थोड़ा तो जीना गुनाह है! अज़मत गुनाह है, अकीदत गुनाह है, मेरे नहीं, तो आप हर शक्ल गुनाह हैं! ज़हन वहां है,(गाज़ा) कदम जा नहीं रहे, यारब मेरी ये अदनी मजबूरियां गुनाह हैं! कबूल है हमको कि हम गुनहगार हैं, आराम से घर बैठे ये कहना गुनाह है!  दिमाग चला रहा है दिल का कारखाना, बोले तो गुनहगार ओ खामोशी गुनाह है, जब भी जहां भी मासूम मरते हैं, उन सब दौर में ख़ुदा होना गुनाह है!

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