सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

मानवता की जय!



,

आज एक सुबह देखी,
धुंधली, सिकुड़ी, सिमटी,
इंसान की सूरज पर विजय देखी,
अहंकार की जय देखी,
ताकत की शय देखी!!


सीमेंट के दैत्याकार पिंजडे में कैद
सुबह,
मुट्ठी में बंद,
चंद दरख्तों में सांस लेती,
इंसान के पैरों में,
अपनी AC रातों से
रात गई टीवी की बातों से,
और एक लड़ाई की तैयारी,
अपनों से, अपनों के लिए,
बाज़ार से ख़रीदे सपनों के लिये!

और उस सब से पहले,
चंद लम्हों के लिए
सुबह का जायका लेने,


2-मिनिट प्राणायाम,
हँसने का व्यायाम,
देवी को प्रणाम,
दिन भर छुरी चलाने,
शुरुआत राम राम!


किसको फर्क पड़ता है,
अपना मतलब निकल गया,
बाकी सुबह भाड़ में जाए
चाहे धुआं खाए,
चाहे धूल
उसकी औकात क्या,
कल तो फिर आएगी,
हमारी गुलाम जो है!


हमने असीमित जंगल जमीन किए हैं,
इरादे आसमान,
हर किसी पर जीत
यही है हमारी सभ्यता की पहचान!
हम अजेय हैं,
हमने स्वर्ग बनाए हैं,
वो भी वातानकुलित!
नरक भी हमारे तमाम हैं,
हम ही तो भगवान हैं!!
मानवता की जय!!


टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

साफ बात!

  रोशनी की खबर ओ अंधेरा साफ नज़र आता है, वो जुल्फों में स्याह रंग यूंही नहीं जाया है! हर चीज को कंधों पर उठाना नहीं पड़ता, नजरों से आपको वजन नजर आता है! आग है तेज और कोई जलता नहीं है, गर्मजोशी में एक रिश्ता नज़र आता है! पहुंचेंगे आप जब तो वहीं मिलेंगे, साथ हैं पर यूंही नज़र नहीं आता है!  अपनों के दिए हैं जो ज़हर पिए है जो आपको कुछ कड़वा नज़र आता है! माथे पर शिकन हैं कई ओ दिल में चुभन, नज़ाकत का असर कुछ ऐसे हुआ जाता है!

मेरे गुनाह!

सांसे गुनाह हैं  सपने गुनाह हैं,। इस दौर में सारे अपने गुनाह हैं।। मणिपुर गुनाह है, गाजा गुनाह है, जमीर हो थोड़ा तो जीना गुनाह है! अज़मत गुनाह है, अकीदत गुनाह है, मेरे नहीं, तो आप हर शक्ल गुनाह हैं! ज़हन वहां है,(गाज़ा) कदम जा नहीं रहे, यारब मेरी ये अदनी मजबूरियां गुनाह हैं! कबूल है हमको कि हम गुनहगार हैं, आराम से घर बैठे ये कहना गुनाह है!  दिमाग चला रहा है दिल का कारखाना, बोले तो गुनहगार ओ खामोशी गुनाह है, जब भी जहां भी मासूम मरते हैं, उन सब दौर में ख़ुदा होना गुनाह है!

जिंदगी ज़हर!

जिंदगी ज़हर है इसलिए रोज़ पीते हैं, नकाबिल दर्द कोई, (ये)कैसा असर होता है? मौत के काबिल नहीं इसलिए जीते हैं, कौन कमबख्त जीने के लिए जीता है! चलों मुस्कुराएं, गले मिलें, मिले जुलें, यूं जिंदा रहने का तमाशा हमें आता है! नफ़रत से मोहब्बत का दौर चला है, पूजा का तौर "हे राम" हुआ जाता है! हमसे नहीं होती वक्त की मुलाज़िमी, सुबह शाम कहां हमको यकीं होता है? चलती-फिरती लाशें हैं चारों तरफ़, सांस चलने से झूठा गुमान होता है! नेक इरादों का बाज़ार बन गई दुनिया, इसी पैग़ाम का सब इश्तहार होता है! हवा ज़हर हुई है पानी हुआ जाता है, डेवलपमेंट का ये मानी हुआ जा ता है।