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जून, 2019 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

अभी यहीं। !

मौजूद हूँ हरसू, जहाँ से शुरू हुई, जहाँ विलीन, कहीं पतली लकीर, कहीं कुदरत की शमशीर झरना बन गिरती हुई, कहीं चारों तरफ फिरती हुई, समंदर में खोकर, कहीं मैंमय होकर! जहां भी हूँ, अभी, इस लम्हा हूँ, जीवित, ज़िंदा, जिंदादिल, न में काल थी, न कल होउंगी, इसी एक पल में, हूँ भी और गुम भी, अपनी परछाई नही हूँ! इस जगह और हज़ार मील दूर, मैं ही हूँ, और इसी घड़ी, कहीं उमड़ी, कहीं उफ़ान, कहीं सिमटी, कहीं वीरान और ये सब सच है,  इसी दौरान, आप क्यों हैं परेशान, हैरान,  आँसू, मुस्कान? जो जब है तभी सच है! कितना आसान सचमुच है! बहते रहिए! पर, अगर आप यादों में अटके हुए हैं, तो मुमकिन है सच से भटके हुए हैं, In awe of these words"..the river is everywhere at the same time, at the source and at the mouth, at the waterfall, at the ferry, at the current, in the ocean and in the mountains, everywhere, and that the present only exists for it, not the shadow of the past, nor the shadow of the future.." Siddhartha by Hermann Hesse.

रंग और रंगत!

रंग क्या हैं? नतीजा हैं या वज़ह हैं, बने हैं या बनाए हैं? आख़िर कहाँ से आए हैं? करिश्मा हैं या कैरिसमा क्या अच्छे बुरे हैं? हल्के-गहरे हैं! कम-ज्यादा? अकेले चलते हैं या साथ, रंगों में कुछ अकेला भी होता है क्या? ख़ुद में पूरा, कोई कसर नहीं, दूसरे का रत्ती असर नहीं? पीला, थोड़ा हरा भी होता है? नारंगी ज़रा सुनहरा? क्या लगता है? रंगों की हमेशा लड़ाई चलती होगी? एक दूसरे पर हावी होने को? खासतौर पर सूरज डूबते? शायद उनका दंगा होता होगा, खुली छूट, मार काट? तभी शायद अंधेरा आता है? और बेशर्मी देखो! अगली सुबह फिर शुरू, और बादल आएं तो मत पूछो पर्दे के पीछे से क्या क़त्लेआम, अक्सर लगता है, भगवा ने किया सबका काम तमाम सब भगवा, बाकी सब भाग गया? पर रात! कहाँ कभी पूरी काली होती है? आख़िर चांदनी का ख़ालिस, गहरा सफेद, उसी घुप्प काले के साथ है, क्या लगता है क्या उनके जज़्बात हैं? सदियों से चलती लड़ाई? कभी भी न रात पूरी काली हो पाई न ही चांदनी, काले के मुँह रोशनी पोत पाई! कहीं ऐसा तो नहीं सारे रंग मिले हैं? चाल चलते, हम

एक सुबह डिकोया!

एक सुबह डिकोया, (जगह का नाम है, डिक्शनरी का क्या काम😊) हुआ कुछ नहीं , और फिर भी, रंग सारे, लगे हुए हैं ! खिले हुए, खुले हुए कहाँ से लाते हैं इतना जोश , इतनी उम्मीद? वो भी चारों तरफ   नकारा इंसानों से घिरे होकर, काटते, छांटते, बाँटते, कचरा फैलाते? शायद कोई अहम नहीं  है, कोई और संभालेगा, ये वहम नहीं है! एक एक बूंद,   एक एक पत्ती हर एक फूल, खिला, मुरझाया, गिरा जानता है अपनी ख़ासियत! पूरे भरोसे, कि दुनिया में उसकी जगह है, यही उसकी वजह है! गुरुर किस बात का, किसी की किसी पर विजय नहीं है! (डिकोया, हैटन, श्रीलंका में है)

किसका हाथ है?

किसका हाथ है, किसके साथ है, क्या हो रहा है, ये नहीं, ये की क्या जज़्बात है? आप उम्मीद हैं या सिर्फ हालात हैं? हक़ीकत आग है,  दूर है कहीं, किसी को पास है! वो जुदा है क्या,  जो आपका आकाश है? अनछुआ, अछूता, जो हो रहा है हर ओर, आपको अवकाश है? झाँक रहे हैं सच हर कोने से, क्या नज़र है, तय है आपके होने से! नज़रिया क्या है? वो जो चमकता है या जो स्याह है? वज़ह है क्या ओ क्या सिवाय है? सच के क्या मायने हैं, सच के क्या आईने हैं? जो दिख रहा है वो, या जो टिक गया है वो, मानने को मजबूर हैं, या चलता है क्योंकि दूर हैं?

और आप बडे?

बस इतने ही हम हैं! और आप? कहते हो ज़रा गहरा जाओ? गहराई डुबोती है, सतह सुरक्षित होती है, तारीख गवाह है, लाखों भूखे बेपनाह हैं,  तीर मार लिया,  आपने - पुर्वजों? दिन पे दिन खत्म होती जमीं  कितनी नस्लें,  ये ही तरक्की है,  जिसका एहसान जताते हैं? फ़ुटपाथ पर भीख मांगते बच्चे क्या बताते हैं?

खामोश बातें!

मत कहो हमसे, कुछ कहने को, आज बस हमको चुप रहने दो... क्या है कहा नहीं जो, क्या है सुना नहीं जो, क्यों वक़्त को अपने हालात बनाएं, जो है वो भरोसा रहने दो! आज बस हमको चुप रहने दो... कुछ शिकवे हमारे जो कुछ उनकी शिकायतें वो, ये हसींन मुश्किलें क्यों सुलझाएं, जो हैं जज़्बात रहने दो! आज बस हमको चुप रहने दो... सच अपने सपने हैं जो, सपने जो उनके सच हैं! वो ये फ़र्क किस किस को समझाएं? कुछ तो बिन-बात रहने दो आज बस हमको चुप रहने दो... इतने नज़दीक हैं जो, दूरी उतनी हो क्यों, पास से फासलें यूँ नज़र आएं, आपस की बात है रहने दो! आज बस हमको चुप रहने दो!!