हरसू,
जहाँ से शुरू हुई,
जहाँ विलीन,
कहीं पतली लकीर,
झरना बन गिरती हुई,
कहीं चारों तरफ फिरती हुई,
समंदर में खोकर,
कहीं मैंमय होकर!
जहां भी हूँ,
अभी, इस लम्हा हूँ,
न में काल थी, न कल होउंगी,
इसी एक पल में, हूँ भी और गुम भी,
अपनी परछाई नही हूँ!
इस जगह और हज़ार मील दूर,
मैं ही हूँ, और इसी घड़ी,
कहीं उमड़ी, कहीं उफ़ान,
कहीं सिमटी, कहीं वीरान
और ये सब सच है,
आप क्यों हैं परेशान, हैरान,
आँसू, मुस्कान?
जो जब है तभी सच है!
कितना आसान सचमुच है!
बहते रहिए!
पर, अगर आप यादों में अटके हुए हैं,
तो मुमकिन है सच से भटके हुए हैं,
In awe of these words"..the river is everywhere at the same time, at the source and at the mouth, at the waterfall, at the ferry, at the current, in the ocean and in the mountains, everywhere, and that the present only exists for it, not the shadow of the past, nor the shadow of the future.." Siddhartha by Hermann Hesse.
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