जरूरी बात पर गरीबी कुर्बान!
बाबरी गिराना अपराधी काम,
पर १०० खून माफ़, रामनाम!
गुनाह कबूल भी और वसूल भी,
जिसका दरबार उसका ऊसूल भी!
नापाक इरादे आज़ पाक हो गए,
'नफ़रत' वाज़िब जज्बात हो गए!
कहने को सबका एक संविधान,
कहने को क्या, कहना आसान!
बनाने वाले से गिराने वाला बड़ा,
धर्म की नैतिकता चिकना घड़ा!
रामनाम केवल सच हुआ
बाक़ी सच का क्या हुआ?
ये लो जमीं, खड़े कर लो अपने यकीं,
हमारी ताकत, तुम्हारी क्या औकात ही?
उम्मीद ख़राब कर दी, यकीन पर हथोड़े चलाए,
चार खंबों ने तंत्र के मिलकर यूँ षड्यंत्र चलाए!
इंसान मजहबी, ईमान मज़हबी, शफ़ाहत मज़हबी,
मुल्क अजनबी, शहर अजनबी, रिश्ते अजनबी!
जमहूरियत कहें किस सूरत,
बदनियती,खौफ, शक-सुवा!
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