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मेरी बस्ती नई हस्ती!?


वतनपरस्ती जो है वो कौमी हस्ती भी है,
मेरी पूजा तम्हारी अज़ान बनी है!!

नफ़रत क़रीब आई तो मोहब्बत बन गई,
अंजान खुद से जो अब पहचान बनी है!

हक़ की बात अब जो जुबान बनी है
अब मुल्क की तस्वीर जवान बनी है!

आबाद हो गई हरसु आज़ादी की बात,
भीड़ मेरी गली की अवाम बनी है!

साज़िश थी पूरी डुबाने की इसको,
चीख़ निकली ओ संविधान बनी है!!

फ़न चमक उठे हुक़ूमत की तलवार पे,
ज़िंदाबाद की बात जो इंकलाब बनी है!!


दूर है कश्मीर, कन्याकुमारी से बहुत,
इन दिनों ज़रा सी उम्मीद बनी है!


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साफ बात!

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मेरे गुनाह!

सांसे गुनाह हैं  सपने गुनाह हैं,। इस दौर में सारे अपने गुनाह हैं।। मणिपुर गुनाह है, गाजा गुनाह है, जमीर हो थोड़ा तो जीना गुनाह है! अज़मत गुनाह है, अकीदत गुनाह है, मेरे नहीं, तो आप हर शक्ल गुनाह हैं! ज़हन वहां है,(गाज़ा) कदम जा नहीं रहे, यारब मेरी ये अदनी मजबूरियां गुनाह हैं! कबूल है हमको कि हम गुनहगार हैं, आराम से घर बैठे ये कहना गुनाह है!  दिमाग चला रहा है दिल का कारखाना, बोले तो गुनहगार ओ खामोशी गुनाह है, जब भी जहां भी मासूम मरते हैं, उन सब दौर में ख़ुदा होना गुनाह है!

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