मैं भारत हूं...
टुकड़े टुकड़े,
टूटता, बिखरता,
बिलखता,
आज-कल
अपनी पहचान खो,
खोजता हूं,
नफ़रत और दरिंदगी में,
हिंदुत्व की गंदगी में,
अयोध्या में घायल हूं,
हरिद्वार में कातिल,
किसानों की लाश हूं,
भीमा-कोरेगांव का झूठ हूं,
आर. एस. एस. की साजिश हूं,
भीड़ का पागलपन भी में ही,
मैं ही पड़ा लिखा वहशी हूं,
मैं ही धर्म का तैशी हूं!
सभ्यता की ऐसी तैसी हूं!
दिल के, दिमाग के,
सोच के, हमदिली के
टुकड़े टुकड़े कर के
सब एक हैं,
कोई पहचान नहीं किसी की
सब शामिल हैं,
कोई जान कर,
कोई चुप मानकर,
कोई मजबूर जानकर,
गुस्से में, नफ़रत से,
गले पर तलवार की धार,
सर पर राम सवार,
कराते जयजयकार,
भगवान को प्यारे होते,
कोई जी के, कोई मारे हुए,
अपने अपने टुकड़ों में,
सब एक ही भारत हैं,
पर क्या एक हैं ?
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