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मैंटर - एक परिभाषा

 

पागलपन

दिमाग खराब हो गया है, सीधा हिसाब हो गया है! नफरतें वाज़िब बन गई हैं! शराफत नकाब हो गया है! पागल चीखते हैं मरामराम, ये बड़ा ही आम हो गया है! लकीरें दीवार बन गई हैं, बंटवारा आसान हो गया है! भक्ति खून की प्यासी है, श्रद्धा जिहाद हो गया है! मीट खाते बनाते मार डालो, नरभक्षी स्वाद हो गया है! वहशत, दहशत, सियासत, यूं राम का नाम हो गया है! चुप हैं सब धर्म के नाम से, गुनाह आसान हो गया है! "अल्ला ओ अकबर" किसी का, किसी का जय श्री राम हो गया है!

युद्ध वार लड़ाई!

खेल किसका है,  खिलाड़ी कौन है, और इस खेल अपने को लाचार मानता, वो अनाड़ी कौन है? दुनिया सबकी है, दर्शक कोई भी नहीं, आपको तय करना है, आप खेल रहे हैं या खेले जा रहे हैं? मारे जा रहे हैं, बेचारे जा रहे हैं, खबर पड़ रहे हैं, "हमारा क्या", बोल, खुद को नकारे जा रहे हैं! बड़ी ताकतें, धमाकेदार बम, ये सब में लाज़िम सोचना,'कौन हम'? यूं, खुद को'बेचारे' जा रहे हैं! यही है खेल, बड़ी सारी ताकत कम,कमज़ोर, हम?क्या करें? क्यों अपने को सवाले जा रहे हैं! सोच अपनी है, रखें हमदिली, ओ फैलती नफ़रत को जहर बोल पाएं, ऐसे अपने को संभाल पा रहे हैं!!

मेरे प्रियजनों!

 

रंग बेरंग!!

जमीं नहीं रही अपनी, पैर टूट गए, रहसह के बस मेरे पंख छूट गए! उड़ने के सिवा अब चारा नहीं, इस तरह वो मेरे रास्ते लूट गए! खून से अपने ही महक आती है, नफ़रत को सब, अपने जुट गए! बस एक रंग में सब बातें करनी हैं, मेरे आंगन के सारे मौसम उठ गए! कौन कहता है कि दुनिया मेरी हो, लाइब्रेरी से वो शब्दकोश हट गए! मेरे तुम्हारे अब हमारे नहीं रहे, यूं रिश्तों में मायने सिमट गए! सब के सच अब अलग अलग हैं, ये बोल सब महफिल से उठ गए! 

कुछ होना है!

"कुछ होना है" खेल है, दुनिया का! आप खिलौना हैं! सच तमाम है,  झूठ बोलते, उसके सामने आप बौना हैं! आप कम है, क्योंकि कोई ज्यादा है, खेल घिनौना है! कंधे किसी के सीढ़ी किसी को कामयाबी भी बोझ ढोना है! तराज़ू किस के, नाप किसका बाज़ार बड़ा है, आप नमूना हैं! रंग फीका है, ऊंचाई टीका है, वज़न ज्यादा कम मुश्किल होना है! "मैं" पहचान, पीड़ा, अभिमान, बड़ी तस्वीर, आप एक कोना हैं!

पहचानें!!

अपनी नजर से खुद को देख पाएं कभी ऐसा एक आइना बना पाएं! शोर बहुत है मेरी नाप तौल का , कोई तराज़ू मेरा वज़न समझ पाए? छोटा बड़ा अच्छा बुरा कम जादा, वो सांचा कहां जिसमें समा जाएं? नहीं उतरना किसी उम्मीद को खरा! जंजीरें हैं सब गर आप समझ पाएं! मुबारकें सारी, रास्ता तय करती हैं, 'न!' छोड़! चल अपने रास्ते जाएं!! वही करना है जो पक्का है, तय है? काहे न फिर बात ख़त्म कर पाएं? अलग नहीं कोई किसी से कभी भी, ज़रा सी बात जो ज़रा समझ पाएं!!