सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

खुदगर्ज़ मन की दुआ!



गर्मी में बारिश की झलक, 
नेक इरादॊं के फलक
खुदगर्ज़ मन की दुआ, 

कुछ देर तलक, 
कुछ देर तलक



और चंद लम्हों तलक,
झपक न जाये पलक
बिरली सच्चाई है

देर उतरेगी हलक 

खुदगर्ज़ मन की दुआ, 
कुछ देर तलक, कुछ देर तलक  



सुन के बादल कि गरज,
जाग उठती है ललक 
कौन जाने असर दुआ का है,
 या मर्ज़ी ए मलक

खुदगर्ज़ मन की दुआ, 
कुछ देर तलक, कुछ देर तलक 


हम अकेले नहीं,
कहती है पंछी की चहक
सर हलाती हैं जमीं, 
भेज मट्टी कि महक
खुदगर्ज़ मन की दुआ, 
कुछ देर तलक, कुछ देर तलक 



कान में बारिश की टिपक,
पत्तों पे बुंदों की चमक,
हर सांस इशारे से,
कहती है ज़रा और बहक
खुदगर्ज़ मन की दुआ, 
कुछ देर तलक, कुछ देर तलक 



टिप्पणियाँ

  1. बहुत ही सुन्दर व लाजवाब अभिव्यक्ति लगी ।

    जवाब देंहटाएं
  2. Bahut Khub.
    http://kavyamanjusha.blogspot.com/
    Word verification bhi hata dijiye, comment karana sabke liye easy ho jaaega.
    Shubhkaamnaae

    जवाब देंहटाएं
  3. emotions aptly captured... facility with hindi is humbling. i wish i could write like this in ANY language. brilliantly done...

    जवाब देंहटाएं
  4. इन पंक्तियों ने दिल छू लिया... बहुत सुंदर ....रचना....

    जवाब देंहटाएं

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

साफ बात!

  रोशनी की खबर ओ अंधेरा साफ नज़र आता है, वो जुल्फों में स्याह रंग यूंही नहीं जाया है! हर चीज को कंधों पर उठाना नहीं पड़ता, नजरों से आपको वजन नजर आता है! आग है तेज और कोई जलता नहीं है, गर्मजोशी में एक रिश्ता नज़र आता है! पहुंचेंगे आप जब तो वहीं मिलेंगे, साथ हैं पर यूंही नज़र नहीं आता है!  अपनों के दिए हैं जो ज़हर पिए है जो आपको कुछ कड़वा नज़र आता है! माथे पर शिकन हैं कई ओ दिल में चुभन, नज़ाकत का असर कुछ ऐसे हुआ जाता है!

मेरे गुनाह!

सांसे गुनाह हैं  सपने गुनाह हैं,। इस दौर में सारे अपने गुनाह हैं।। मणिपुर गुनाह है, गाजा गुनाह है, जमीर हो थोड़ा तो जीना गुनाह है! अज़मत गुनाह है, अकीदत गुनाह है, मेरे नहीं, तो आप हर शक्ल गुनाह हैं! ज़हन वहां है,(गाज़ा) कदम जा नहीं रहे, यारब मेरी ये अदनी मजबूरियां गुनाह हैं! कबूल है हमको कि हम गुनहगार हैं, आराम से घर बैठे ये कहना गुनाह है!  दिमाग चला रहा है दिल का कारखाना, बोले तो गुनहगार ओ खामोशी गुनाह है, जब भी जहां भी मासूम मरते हैं, उन सब दौर में ख़ुदा होना गुनाह है!

गाज़ा की आवाज़!

 Translation of poem by Ni'ma Hasan from Rafah, Gaza, Palestine (https://www.facebook.com/share/r/17PE9dxxZ6/ ) जब तुम मुझे मेरे डर का पूछते हो, मैं बात करतीं हूं उस कॉफी वाले के मौत की,  मेरी स्कर्ट की जो एक टेंट की छत बन गई! मेरी बिल्ली की, जो तबाह शहर में छूट गई और अब उसकी "म्याऊं" मेरे सर में गूंजती है! मुझे चाहिए एक बड़ा बादल जो बरस न पाए, और एक हवाईजहाज जो टॉफी बरसाए, और रंगीली दीवारें  जहां पर मैं एक बच्चे का चित्र बना सकूं, हाथ फैलाए हंसे-खिलखिलाए ये मेरे टेंट के सपने हैं, और मैं प्यार करती हूं तुमसे, और मुझमें है हिम्मत, इतनी, उन इमारतों पर चढ़ने की जो अब नहीं रहीं,, और अपने सपनों में तुम्हारी आगोश आने की, मैं ये कबूल सकती हूं, अब मैं बेहतर हूं, फिर पूछिए मुझसे मेरे सपनों की बात फिर पूछिए मुझसे मेरे डर की बात! –नी‘मा हसन, रफ़ा, गाज़ा से विस्थापित  नीचे लिखी रचना का अनुवाद When you ask me about my fear I talk about the death of the coffee vendor, And my skirt  That became the roof of a tent I talk about my cat That was left in the gutted city and now meo...