मासूम चीख अंजान हालात अनगिनत सवालात पर शब्द कहाँ है? प्यार और, नाज़ुक ज़बरदस्ती माँ भी तो करती है, पर ये कुछ अलग एहसास है, और ये मुस्कराहट...! जहरीली पर शब्द कहाँ है? माँ को बोला, हंस दीं, “तू बहुत प्यारी है” सबको तुझसे प्यार है, पर मुझे मालूम है ये ‘स्पर्श’ बेकार है वो हाथ उन जगहों पर क्यों जाते हैं? “मासूम चीख” पर शब्द कहाँ हैं? आप समझ पाएंगे ? गोद है उनकी, चीजें मेरे पसंद की, सबको दिखता है “ये प्यार”, और मैं समझ नहीं पाती? वो कुछ दबाव, कपड़ों के साथ खेल, मम्मी भी करती हैं, पर ये कुछ अलग है, पर मेरे पास शब्द कहाँ हैं? खो गयी फिर मेरी... मासूम चीख! (लैंगिक शोषण के शिकार अनगिनत बच्चों को समर्पित, जिनकी मासूम चीखें माँ-बाप के कानों पर दस्तक देते देते थक जाती हैं)
अकेले हर एक अधूरा।पूरा होने के लिए जुड़ना पड़ता है, और जुड़ने के लिए अपने अँधेरे और रोशनी बांटनी पड़ती है।कोई बात अनकही न रह जाये!और जब आप हर पल बदल रहे हैं तो कितनी बातें अनकही रह जायेंगी और आप अधूरे।बस ये मेरी छोटी सी आलसी कोशिश है अपना अधूरापन बांटने की, थोड़ा मैं पूरा होता हूँ थोड़ा आप भी हो जाइये।