क्या सच आजाद होते हैं?
अकेले?
अपने आप में पूर्ण?
आत्मनिर्भर
दो सच जब साथ आते हैं
तो सामने होते हैं या बगल में
इंसान जब सामने आते है तो
नागासाकी पहुँच जाते हैं,
अगर आप कहते हैं दुनिया सुन्दर है
तो आप शायद बन्दर हैं
टुकुर टुकुर देखते,
पैरॊं पर खड़ा होना सीख गए
पर ध्यान शायद अब भी उस आम में अटका है
जिसकी गुठली के दाम नहीं होते
दुनिया चीख कर कह रही है
“ये आदमी किसी काम का नहीं”
पर आप कान नहीं होते!
अकेले?
अपने आप में पूर्ण?
आत्मनिर्भर
दो सच जब साथ आते हैं
तो सामने होते हैं या बगल में
इंसान जब सामने आते है तो
नागासाकी पहुँच जाते हैं,
अगर आप कहते हैं दुनिया सुन्दर है
तो आप शायद बन्दर हैं
टुकुर टुकुर देखते,
पैरॊं पर खड़ा होना सीख गए
पर ध्यान शायद अब भी उस आम में अटका है
जिसकी गुठली के दाम नहीं होते
दुनिया चीख कर कह रही है
“ये आदमी किसी काम का नहीं”
पर आप कान नहीं होते!
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