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सफ़र के नुस्खे!


मुसाफ़िर रास्ते चुनते हैं मील के पत्थर नहीं गिनते,
चलते रहिये युँ ही सफ़र अपने माफ़िक-ए-मन के!


फ़िर पहलू से एक करवट उठी है,
फ़िर कोई आहट एक लम्हा बनी है,
फ़िर कोई नज़दीकी फ़ांसला बनी है 

फ़िर एक आह सफ़र हो चली है! 

कुछ नहीं बदला है तो क्या अलग है,
देखें आज़ शफ़क को क्या फ़लक है?
देखें आज़ उफ़क को क्या ललक है?

नये लम्हों को ज़ज्ब करने मेरी पलक है!


सफ़र लंबा है, दो साँसें आज ली तो लीं,
पीछे क्या मुड़ना दो घड़ियां जरा जी तो लीं
उठा लो अगला कदम दौर बदलने दो, फ़िर
दास्तां बनेगी, आपको फ़ूर्सत मिली न मिली
!




दिन के गुम दो-चार पहर, भटके हैं क्युँ शहर शहर
डर, विपदा, अंजान कहर, ठोर कहां और कहां ठहर

कुछ देर रुके हैं, तो हम मुसाफ़िर कम नहीं होते,

ज़ारी सफ़र सदिओं से साहिल के किनारे, खड़े हैं

(शफ़क - skyline during sunset; उफ़क़ - horizon; फ़लक - universe, sky)

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हाथ पर हाथ!!

मर्द बने बैठे हैं हमदर्द बने बैठे हैं, सब्र बने बैठे हैं, बस बैठे हैं! अल्फाज़ बने बैठे हैं आवाज बने बैठे हैं, अंदाज बने बैठे हैं, बस बैठे हैं! शिकन बने बैठे हैं, सुखन बने बैठे हैं, बेचैन बने बैठे हैं, बस बैठे हैं! अंगार बने बैठे हैं तूफान बने बैठे हैं, जिंदा हैं शमशान बने बैठे हैं! शोर बिना बैठे हैं, चीख बचा बैठे हैं, सोच बना बैठे हैं बस बैठे हैं! कल दफना बैठे हैं, आज गंवा बैठे हैं, कल मालूम है हमें, फिर भी बस बैठे हैं! मस्जिद ढहा बैठे हैं, मंदिर चढ़ा बैठे हैं, इंसानियत को अहंकार का कफ़न उड़ा बैठे हैं! तोड़ कानून बैठे हैं, जनमत के नाम बैठे हैं, मेरा मुल्क है ये गर, गद्दी पर मेरे शैतान बैठे हैं! चहचहाए बैठे हैं,  लहलहाए बैठे हैं, मूंह में खून लग गया जिसके, बड़े मुस्कराए बैठे हैं! कल गुनाह था उनका आज इनाम बन गया है, हत्या श्री, बलात्कार श्री, तमगा लगाए बैठे हैं!!

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