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दावत-ए-ज़िन्दगी!

जिस्मो-जहां की ठरक ठरक
ले चल ए दिल किसी और तरफ!

सुबह-शाम का कोई फरक,
लम्हे चढ़ें सर सरक सरक!

नहीं उतरे कोई बात हलक,
मेरी दुनिया कोई और फलक!



एक सुट्टा और एक जाम अरक,
किसको परवा वो क्या है अदब!

गले लगने ओ गले पड़ने के फरख,
अहमक तहजीबों के कैसे वरक़!


अंदाज़ आपके वो लहज़ा-ओ-लहक,
इंकलाब इतना के जाये दौर बहक!

ज़िंदा हैं सब अरमानों की महक,
दावत-ए-ज़िन्दगी बहक बहक!

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हाथ पर हाथ!!

मर्द बने बैठे हैं हमदर्द बने बैठे हैं, सब्र बने बैठे हैं, बस बैठे हैं! अल्फाज़ बने बैठे हैं आवाज बने बैठे हैं, अंदाज बने बैठे हैं, बस बैठे हैं! शिकन बने बैठे हैं, सुखन बने बैठे हैं, बेचैन बने बैठे हैं, बस बैठे हैं! अंगार बने बैठे हैं तूफान बने बैठे हैं, जिंदा हैं शमशान बने बैठे हैं! शोर बिना बैठे हैं, चीख बचा बैठे हैं, सोच बना बैठे हैं बस बैठे हैं! कल दफना बैठे हैं, आज गंवा बैठे हैं, कल मालूम है हमें, फिर भी बस बैठे हैं! मस्जिद ढहा बैठे हैं, मंदिर चढ़ा बैठे हैं, इंसानियत को अहंकार का कफ़न उड़ा बैठे हैं! तोड़ कानून बैठे हैं, जनमत के नाम बैठे हैं, मेरा मुल्क है ये गर, गद्दी पर मेरे शैतान बैठे हैं! चहचहाए बैठे हैं,  लहलहाए बैठे हैं, मूंह में खून लग गया जिसके, बड़े मुस्कराए बैठे हैं! कल गुनाह था उनका आज इनाम बन गया है, हत्या श्री, बलात्कार श्री, तमगा लगाए बैठे हैं!!

पूजा अर्चना प्रार्थना!

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