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आज की ताजा ख़बर!

नफ़रत के नए कारोबार निकले हैं,
चेतिये के हैवानी सरोकार निकले हैं,
सरकार को इंसानियत कमज़ोर चाहिए,
बड़े संगीन ये पैरोकार निकले हैं!


सच जानिए फिर मानने की बात करेंगें,
क्या हम को आज के हालात करेंगे?
मुँह बोली खबरें ज़ज्बातों को धरेंगे,
बहाना चाहिए, किसी से नफरत करेंगे!!😢

बाबुल बबूल बन गया,
फूल कैसे शूल बन गया?
नफ़रत के कारोबारी को,
मासूमों का खून कबूल हो गया!!

सब लीक हो रहा है,
हाथ कुछ नहीं आता,
और कहते हैं
सब ठीक हो रहा है?
इंसानियत तार-तार है,
और रामनाम पैबंद हो गया है,
हिंदुत्व जैसे बदबूदार गंद हो गया है!

बेटा राम को गंवारा नहीं हुआ,
ईमाम नफरत का मारा नहीं हुआ,
जल रही है आग तमाम सीनों में,
मोहब्बत से किस का गुजारा न हुआ?


अम्बेडकर में राम आ गया,
सीता को राम खा गया,
बगल की छुरी को राम भा गया,
नवमी को तेरवी का पैगाम आ गया
अमन रखने इमाम कह गया,
बाज़ार धर्म का सामान आ गया,
नफ़रत चारों धाम आ गया!

पेट्रोल डीजल को आसमान मिला है,
15 लाख न मिलने का इनाम मिला है,
कहते हैं भारत को दुनिया में शान मिला है,
पूछिए किसान से, शमशान मिला है!!

बेटियों के गरेबां क़ानून खींचता है,
ये मुस्तक़बिल (भविष्य) है,
जुमलों से बहरी हो गई अवाम,
ये मुश्किल है!!







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हाथ पर हाथ!!

मर्द बने बैठे हैं हमदर्द बने बैठे हैं, सब्र बने बैठे हैं, बस बैठे हैं! अल्फाज़ बने बैठे हैं आवाज बने बैठे हैं, अंदाज बने बैठे हैं, बस बैठे हैं! शिकन बने बैठे हैं, सुखन बने बैठे हैं, बेचैन बने बैठे हैं, बस बैठे हैं! अंगार बने बैठे हैं तूफान बने बैठे हैं, जिंदा हैं शमशान बने बैठे हैं! शोर बिना बैठे हैं, चीख बचा बैठे हैं, सोच बना बैठे हैं बस बैठे हैं! कल दफना बैठे हैं, आज गंवा बैठे हैं, कल मालूम है हमें, फिर भी बस बैठे हैं! मस्जिद ढहा बैठे हैं, मंदिर चढ़ा बैठे हैं, इंसानियत को अहंकार का कफ़न उड़ा बैठे हैं! तोड़ कानून बैठे हैं, जनमत के नाम बैठे हैं, मेरा मुल्क है ये गर, गद्दी पर मेरे शैतान बैठे हैं! चहचहाए बैठे हैं,  लहलहाए बैठे हैं, मूंह में खून लग गया जिसके, बड़े मुस्कराए बैठे हैं! कल गुनाह था उनका आज इनाम बन गया है, हत्या श्री, बलात्कार श्री, तमगा लगाए बैठे हैं!!

पूजा अर्चना प्रार्थना!

अपने से लड़ाई में हारना नामुमकिन है, बस एक शर्त की साथ अपना देना होगा! और ये आसान काम नहीं है,  जो हिसाब दिख रहा है  वो दुनिया की वही(खाता) है! ऐसा नहीं करते  वैसा नहीं करते लड़की हो, अकेली हो, पर होना नहीं चाहिए, बेटी बनो, बहन, बीबी और मां, इसके अलावा और कुछ कहां? रिश्ते बनाने, मनाने, संभालने और झेलने,  यही तो आदर्श है, मर्दानगी का यही फलसफा,  यही विमर्श है! अपनी सोचना खुदगर्जी है, सावधान! पूछो सवाल इस सोच का कौन दर्जी है? आज़ाद वो  जिसकी सोच मर्ज़ी है!. और कोई लड़की  अपनी मर्जी हो  ये तो खतरा है, ऐसी आजादी पर पहरा चौतरफा है, बिच, चुड़ैल, डायन, त्रिया,  कलंकिनी, कुलक्षिणी,  और अगर शरीफ़ है तो "सिर्फ अपना सोचती है" ये दुनिया है! जिसमें लड़की अपनी जगह खोजती है! होशियार! अपने से जो लड़ाई है, वो इस दुनिया की बनाई है, वो सोच, वो आदत,  एहसास–ए–कमतरी, शक सारे,  गलत–सही में क्यों सारी नपाई है? सारी गुनाहगिरी, इस दुनिया की बनाई, बताई है! मत लड़िए, बस हर दिन, हर लम्हा अपना साथ दीजिए. (पितृसता, ग्लोबलाइजेशन और तंग सोच की दुनिया में अपनी जगह बनाने के लिए हर दिन के महिला संघर्ष को समर्पि

हमदिली की कश्मकश!

नफ़रत के साथ प्यार भी कर लेते हैं, यूं हर किसी को इंसान कर लेते हैं! गुस्सा सर चढ़ जाए तो कत्ल हैं आपका, पर दिल से गुजरे तो सबर कर लेते हैं! बारीकियों से ताल्लुक कुछ ऐसा है, न दिखती बात को नजर कर लेते हैं! हद से बढ़कर रम जाते हैं कुछ ऐसे, आपकी कोशिशों को असर कर लेते हैं! मानते हैं उस्तादी आपकी, हमारी, पर फिर क्यों खुद को कम कर लेते हैं? मायूसी बहुत है, दुनिया से, हालात से, चलिए फिर कोशिश बदल कर लेते हैं! एक हम है जो कोशिशों के काफ़िर हैं, एक वो जो इरादों में कसर कर लेते हैं! मुश्किल बड़ी हो तो सर कर लेते हैं, छोटी छोटी बातें कहर कर लेते हैं! थक गए हैं हम(सफर) से, मजबूरी में साथ खुद का दे, सबर कर लेते हैं!