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फ़रवरी, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

ये दास्तां! ब्लॉइंग इन द विंड!

कितने रास्तों पर हम चलें जब कहेंगे ,  हां ! हम हैं इंसान कितनी सरहदों का सामना हम करें जब कहेंगे ,  बस ! अब और नहीं कितनी जंग लड़ें और मरें , जब कहेंगे ,  नहीं ! एक भी और नहीं ! ये दास्तां हवा में है बयां , हवा में है ये दास्तां बयां , कौन से सच सर चढ़े हैं सदीओं से आखिर कब जमीं से मिलेंगे ? कब तक जुल्म में लाखों घुटते रहेंगे  कब कहेंगे हम हैं आज़ाद ? किस किस से ओ कब तक हम मुंह फेरते रहेंगे ,  जैसे कुछ हुआ ही नहीं ? ये दास्तां हवा में है बयां ,  हवा में है ये दास्तां बयां , कितनी बार कोई नज़र उठाते रहें के आ जाए नज़र आसमाँ कितने आंसूं बरसे जब कभी कानों पर ,  जूं रेंग जाए कितनी मौतें और खबरों के बाद ,  " बस ! बहुत हुआ " कह पाएं ? ये दास्तां हवा में है बयां ,  हवा में है ये दास्तां बयां! कौन से आईनों में हम देखें के तस्वीर पुरी जान पाएं? कितने बचपन बच्चों के मजदूरी से मिटें,  और कब वो खेल पाएंगे? कि

संविधान वाली देशभक्ति!

सीखें, आवाज़ उठाएं, साथ आएं, चलों अपने अंदर अम्बेडकर जगाएं कोई भी खास नहीं हैं पैदाईश से बराबरी करने को कंधे से कंधा मिलाएं हर कोई खास है, जो भी पैदाईश हो, जात धर्मे के अब बहाने ने बनाएं! मैला साफ़ करता है कोई कचरा, अच्छी बात है! तो आप हरिजन कहलाएं! सीखें, आवाज़ उठाएं, साथ आएं, कहदो सब से कागज़ नहीं दिखाएं! सीखें, आवाज़ उठाएं, साथ आएं, चलो सब यकीनों के सवाल बन जाएं!! सच नहीं बदले तो नाम बदल दें? किसको शौक है दिव्यांग कहलाएं? बहुत हो गई चापलूसी हिंसा, चलो अंबेडकर वाले देशभक्त बन जाएं! संविधान ही है जो हमें बचाएगा, चलो मिल कर संविधान बचाएं!

उम्र जान!

चीज़ क्या है संविधान क्या जान कीजिए? लाठी को मिलेगी भैंस ये ही कानून लीजिए! कब सोचा था सर पड़ेंगे ऐसे फिरकापरस्त, मुश्किल न हो आखों पर रेबान लीजिए!! आंखों में उनके सरम कैसे ये मान लीजिए, कपड़ों को देख कर उन्हें पहचान लीजिए! इस हिंदुत्व-स्थान में आपको आना है बार बार, पहले अपने जमीर की ख़ुद जान लीजिए!                          किस ने कहा कि आपका भी है हिंदुस्तान? पहले हज़ार बार जुबां पे श्री राम लीजिए !!! होंगे आप सिक्ख, ख्रिस्ती या मुसलमान, हिंदू का है हिंदुस्तान पहले मान लीजिए!! बड़े प्यार से करते हैं वो नफ़रतों की बात, लीचिंग की बात आप ज़रा आसान लीजिए! मुल्क चीज़ ही क्या, काहे मेरी जान लीजिए, नफ़रत के हर तरफ चलो बागवान कीजिए! भूखे भजन नहीं होता ये है पुरानी बात, करोड़ों का है काम जो श्रीराम कीजिए!!

बी बहार!

कैसे हम भुला दिये कश्मीर की पुकार!?  वन्द (च)साल: शीन गाल: बी ए बहार!!  दिल्ली वाले सोचते हैं ये आखिरी प्रहार  वन्द (च)साल: शीन गाल: बी ए बहार!!    in क्या इरादा मुल्क जो करता है ज़ुल्म बार बार!  वन्द (च)साल: शीन गाल: बी ए बहार!!  दिन नहीं गिनते पर उस दिन का इंतजार,  वन्द (च)साल: शीन गाल: बी ए बहार!!    परेशां है अम्मी, मुस्कराते बच्चों को देती पुकार,  वन्द (च)साल: शीन गाल: बी ए बहार!!  वर्दी की मनमरजी है, जमहूरियत तार-तार  वन्द (च)साल: शीन गाल: बी ए बहार!!  बोलने पर बंदिशें और सुनने को नहीं तैयार  वन्द (च)साल: शीन गाल: बी ए बहार!!  देख हाल हमारा हंसते है, आप हैं बीमार  वन्द (च)साल: शीन गाल: बी ए बहार!! 

नफ़रत के प्रकार !

नफ़रत का शिकार आप तब हैं जब आप भी नफ़रत करने लगें आप नफ़रत का शिकार हुए हैं? या नफ़रत के तलबगार हुए हैं? अगर आप भीड़ का हिस्सा बने तो सोचिए आपकी नफरत का माली कौन है? गुनाह हुए हैं तमाम आपके साथ, क्या आप किसी गुनाह के हथियार हुए हैं? चुप रहने से घुटन होती है, खुल कर हम कभी अपनी हैवानियत की बात नहीं करते। ज़ख्म ठीक भी हुए दर्द नहीं जाता, क्या आप बात करने को तैयार हुए हैं? धर्म और नीति राज बन कर आपको नफरती भक्त तो नहीं बना रही? नफ़रतों के दौर की कोई बात न करें, बस कहने को हम होशियार हुए हैं! कत्ल हुए मासूम किस वहशियत से, किस  हिदायत से इतने लाचार हुए हैं? धर्मगुरु भी हैं और राजनेता भी, जिम्मेदारी कोई क्यों नहीं लेता? मज़हब कम पड़े या इंसान सरचढे? जवाबदेही को सब बेकार हुए हैं!! अल्पसंख्यक क्यों हमेशा शिकार बनते हैं? जो कम है उसी को कमजोर करते हैं, उस्तरों के कैसे ये बाज़ार हुए हैं? बचपन हिंसा का शिकार हो तो उसका क्या असर होता है? बचपन के साथ कहाँ वक्त कुछ मिला, कौन से हैं खेल जो इंकार हुए हैं? हिंसा और नफरत हमें चोट पहुं

सुमित सुमीत!

कथनी से करनी बड़ी, कहे दास कबीर, यूँ प्यार से नफ़रत जीते वो ही सच्चे वीर! वो ही सच्चे वीर कि जो दर्द हो जाएं, आँसू जिनके चोट का मलहम बन जाएं! बने चोट का मलहम चलो ये रीत चलाएं, नफ़रत के मारों के चलो सुमीत बन जाएं! बनें सुमीत सब ऐसे कोई न पड़े अकेला, इस दुनिया को करे बहनचारे का खेला! बहनचारे का खेला नहीं सिर्फ़ ये भाईचारा, शामिल हों इसमें सब, नहीं खासा-प्यारा!  हर कोई खासा-प्यारा यही तो है मानवता, यकीन मानो है हम सब में ये क्षमता! क्षमता कितनी हम सब में ये न पूछो, बुद्ध हुए अपने ही बीच, कबीर सोचो!! (एक इंसान से मुलाकात हुई, बात हुई, इंसानियत पर हुए ज़ख्मों का दर्द उनकी आंखों में नज़र आया, वो भी एक डर होता है जो हाथ आगे बढ़ाता है गले लगाने के लिए, ये बात समझ मे आई)

ख़ामोश, तानाशाही अभी जारी है!!

पूरी अवाम को गुनाहगार कर दिया, सत्ता ने ताकत को हथियार कर दिया, रोज लाखों की छाती पर मूंग दल रही है, घटिया मज़ाक है, जो संसद में शायरी चल रही है। बच्चे भी गुनहगार हैं, दादी भी गुनहगार हैं? किसी को कोई हक नहीं, आवाज़ कोई भी जेल की दीवार है? और बाकी मूल्क जैसे गूंगा है, जैसे कश्मीर कोई दूजा है, अपने से जुदा, अलग, उनसे हमें बस लेना है देना कुछ नहीं, हर इंसान को इंसान कहने की वज़ह नहीं, जो अपना नहीं उसका कोई सपना नहीं? क्या अब भी आपको ये सवाल है? कश्मीरियों को कश्मीर क्यों चाहिए? https://m.timesofindia.com/entertainment/hindi/bollywood/news/zaira-wasim-kashmiris-continue-to-exist-and-suffer-in-a-world-where-it-is-so-easy-to-place-restrictions/amp_articleshow/73929642.cms