नफ़रत का शिकार आप तब हैं जब आप भी नफ़रत करने लगें
आप नफ़रत का शिकार हुए हैं?
या नफ़रत के तलबगार हुए हैं?
अगर आप भीड़ का हिस्सा बने तो सोचिए आपकी नफरत का माली कौन है?
गुनाह हुए हैं तमाम आपके साथ, क्या
आप किसी गुनाह के हथियार हुए हैं?
चुप रहने से घुटन होती है, खुल कर हम कभी अपनी हैवानियत की बात नहीं करते।
ज़ख्म ठीक भी हुए दर्द नहीं जाता,
क्या आप बात करने को तैयार हुए हैं?
धर्म और नीति राज बन कर आपको नफरती भक्त तो नहीं बना रही?
बस कहने को हम होशियार हुए हैं!
कत्ल हुए मासूम किस वहशियत से,
किस हिदायत से इतने लाचार हुए हैं?
धर्मगुरु भी हैं और राजनेता भी, जिम्मेदारी कोई क्यों नहीं लेता?
मज़हब कम पड़े या इंसान सरचढे?
जवाबदेही को सब बेकार हुए हैं!!
अल्पसंख्यक क्यों हमेशा शिकार बनते हैं?
जो कम है उसी को कमजोर करते हैं,
उस्तरों के कैसे ये बाज़ार हुए हैं?
बचपन हिंसा का शिकार हो तो उसका क्या असर होता है?
बचपन के साथ कहाँ वक्त कुछ मिला,
कौन से हैं खेल जो इंकार हुए हैं?
हिंसा और नफरत हमें चोट पहुंचाती है पर उसका शिकार हम तब बनते हैं जब हमारी सोच भी हिंसक बन जाए
दुश्मन बनाना आसान है इस दौर,
क्या आप किसी को यार हुए हैं!
बेघर कर दिया ओ जिल्लतें तमाम,
बावजूद वो हैं जो इंसान हुए हैं!
कागज़ ले भी आएंगे आप कहीं से,
कपड़ों से आप अब इश्तहार हुए हैं!
बोली से अपनी क़ातिल तैयार करते हैं
वज़ीरे आज़म हमारे हुनरदार हुए हैं!
(कश्मीर मतलब कश्मीरी मुस्लिम और कश्मीरी पंड़ित भी, (https://youtu.be/WXw7ZbzOM7U ) उस दौर के जब हिंसा ने उन्हें उन्हें उखाड़ दिया, ज़िंदगी से, जमीन से और जलील करके। अक्सर एक के लिए पैरवी करते हम दूसरे तबके की बात नज़रांदाज़ कर देते हैं।मानव अधिकार काम बन जाए तो कुछ लोगों सर ये बात आ जाती है और जिस तरह के दुनिया के हालात हैं ये कुछ लोगों के बस की बात नहीं है, ये हर एक का काम है। अफ़सोस!
नफ़रत और हिंसा जिनके साथ होती है, उनके लिए सबसे बड़ी चुनौती अपने अंदर के इंसान को पालना है, राहुल का इंटरव्यू देखते हुए आप उस इंसान को देख सकते हैं। ये रचना इस इंटरव्यू को सुनने के बाद सोचते सोचते लिखी)
(दूसरी तरफ़ हमारे सत्ताधीश हैं जो नफ़रत पालते हैं और नफ़रत बांटते भी हैं !)
(कश्मीर मतलब कश्मीरी मुस्लिम और कश्मीरी पंड़ित भी, (https://youtu.be/WXw7ZbzOM7U ) उस दौर के जब हिंसा ने उन्हें उन्हें उखाड़ दिया, ज़िंदगी से, जमीन से और जलील करके। अक्सर एक के लिए पैरवी करते हम दूसरे तबके की बात नज़रांदाज़ कर देते हैं।मानव अधिकार काम बन जाए तो कुछ लोगों सर ये बात आ जाती है और जिस तरह के दुनिया के हालात हैं ये कुछ लोगों के बस की बात नहीं है, ये हर एक का काम है। अफ़सोस!
नफ़रत और हिंसा जिनके साथ होती है, उनके लिए सबसे बड़ी चुनौती अपने अंदर के इंसान को पालना है, राहुल का इंटरव्यू देखते हुए आप उस इंसान को देख सकते हैं। ये रचना इस इंटरव्यू को सुनने के बाद सोचते सोचते लिखी)
(दूसरी तरफ़ हमारे सत्ताधीश हैं जो नफ़रत पालते हैं और नफ़रत बांटते भी हैं !)
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